लखीमपुर खीरी: स्याह चेहरे जो वक्त देखकर रोने का अभिनय करते है, सच जनता के सामने है
Lakhimpur Kheri Case: लखीमपुर खीरी में दलित लड़कियों की हत्या पर समाज के ठेकेदार और दलितों के मसीहा आखिर चुप क्यों है? दलित बच्चियों के साथ घिनौना अपराध करने वालों के खिलाफ आखिर मुँह क्यों नहीं खुल रहा इनका? बताइये आरफा खानम शेरवानी और दिलीप मंडल क्या हुआ आपको ?
इस रपट को आप अपने सामने तोलकर देखने का प्रयास करें, कि आखिर कौन-कौन दोषी है? बच्चियों का दोष क्या है, आरोपियों का दोष क्या है और समाज जिसमें हम रहते है उसका दोष क्या है? यकीन मानिए अगर हम इसकी परतें उधेड़ दे तो सब के सब नंगे नजर आएंगे और राजनीति का दोषी होना लाज़िमी है क्योंकि राजनीति लंबे वक्त से समाज का हिस्सा है ही नही। उदय बुलेटिन के विशेष संवाददाता शिवजीत तिवारी की लखीमपुर खीरी घटना पर सीधी सादी रिपोर्ट।
अपराध कितना घिनौना हो सकता है:
देश मे लंबे अरसे से अपराध को घिनौना बनाने की कवायदें चल रहीं है, हालांकि ऐसा नहीं है कि अपराध घिनौने नहीं होते, अपराध की प्रकृति ही ऐसी है, लेकिन अपराध होने के बाद शुरू होता है इसे सजाने संवारने के खेल।
इस ताजातरीन घिनौने अपराध की शुरुआत उत्तर प्रदेश के लखीमपुर जिले के निघासन क्षेत्र में दो नाबालिग बच्चियों को (जिन्हें दलित भी बताया गया है, हालांकि उनका महिला होना शायद काफी नही था) कुछ लोग बहला फुसलाकर अपने साथ बाइक पर बैठाकर ले गए, बच्चियों की माँ ने जानकारी दी कि उन्हें जबरन ले जाया गया था, विरोध करने पर उन्हें लात भी मारी गयी।
और इस मामले के बाद जब परिजनों ने गांव के अन्य लोगों के साथ खेतों में खोजबीन जारी की तो दोनों बच्चियां एक ही दुपट्टे से एक पेड़ पर टंगी हुई मिली, जाहिर सी बात है कि उन्हें मार कर टांगा गया था, क्योंकि कोई भी दो व्यक्ति एक साथ ऐसे फांसी नहीं लगा सकते, खैर मामले में पुलिस और मीडिया के साथ सोशल मीडिया एक्टिव हुआ और समाज को मिला नया मसाला।
तथ्य देखिए घटनास्थल उत्तर प्रदेश, पीड़िता दलित समुदाय से, रेप की आशंका (बाद में पोस्टमार्टम में सामुहिक बालात्कार की पूर्ण पुष्टि हुई है) और हत्या कर निर्मम रूप से टांगने का वाकया।
इसके बाद देश दुनिया से ख़बरों और तोहमतों के जखीरे आने लगे, जाहिर सी बात है कि मामला संगीन था तो स्थानीय लेवल से लेकर प्रदेश और केंद्र की सरकार जो अन्य कार्यो में मस्त थी उसने अंगड़ाई लेकर मामले पर नजर पैनी की और ग्रामीणों द्वारा जाम खुलवाने का प्रयास करके आरोपियों को धरने पकड़ने का कार्यक्रम शुरू किया, लेकिन इसके बाद अचानक से कुछ ऐसा हुआ जिससे लगभग हर मामले पर अपनी बात मुखरता के साथ रखने वाला धड़ा जमीन के अंदर जगह खोजने लगा।
आखिर अचानक चुप्पी कैसे छाई:
जाहिर सी बात को सोशल मीडिया में जो लोग अभी तक दलित बच्चियों के ऊपर होने वाले अत्याचारों को लेकर मशाल जलाए घूम रहे थे उनकी बत्तियों में तेल कैसे कम हो गया, वजह सिर्फ एक थी क्योंकि पुलिस ने तेजी दिखाते हुए तुरंत ही आरोपियों को पकड़ लिया, एक आरोपी ने तो बाकायदा पुलिस पर गोली चलाने की धमकी भी दी, वो बात अलग है कि पुलिस ने पहले मार दी।
Junaid - mastermind of #LakhimpurKheri
pic.twitter.com/fdbCaHKKhD — Shashank Shekhar Jha (@shashank_ssj) September 15, 2022
लेकिन जैसे ही प्रेस कांफ्रेंस में पुलिस अधिकारी ने आरोपियों के नाम के खुलासे किए तो ऐसा लगा मानो अपराधियों ने दलित बच्चियों को नही केवल बच्चियों को मारा है, या ऐसा कहा जा सकता है कि जिन बच्चियों के साथ सामूहिक रेप और हत्या को अंजाम दिया गया वो अब दलित नहीं बची, केवल बच्ची बची, उसके लिए उन्होंने बाकायदा नियमों के तहत सजा की मांग भी की, लेकिन याद रखें कानून के तहत, लेकिन उनके पोस्टरों, ट्वीट्स, मीडिया रिपोर्ट में दलित शब्द या तो गायब हो गया, या मजबूरी वस ऐसे लिखा मानो वो केवल मजबूर हो।
हालात यह है कि हमेशा दलित और वंचित तबकों के ऊपर किये जाने वाले कथित और वास्तविक अत्याचार पर बोलने वाली आरफा खानम शेरवानी जी की वाल सूनी थी, लेकिन जब नेटिजन्स ने उनसे चुभते सवाल पूंछ लिए तो उनका गुस्सा कुछ अलग तरीके से ही निकल गया, लेकिन इस गुस्से में भी धार्मिक रंग था, क्योंकि सवालों में उन्हें भगवा रंग नजर आ गया था।
No one is shielding or taking out rallies in favor of the Lakhimpur rape accused.
The law of the land is supreme and the rapist monsters should be given the strictest punishment.
But why is the Saffron Gang jumping with excitement about the religion of the accused? — Arfa Khanum Sherwani (@khanumarfa) September 15, 2022
यही नही, दलित समाज के स्वयंभू मसीहा दिलीप सी मंडल ने तो एक शब्द कहने की भी जहमत नही उठायी।
प्रदेश की मुख्य विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी को लगता है कि सरकार मामले को धार्मिक रंग देना चाहती है।
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क्या हाथरस जिसमें कि योगीजी के स्वजातीय अपराधी थे उस मामले में पीड़ितों को अब तक न्याय मिला ?
क्या इस मामले में योगीजी या कोई भाजपा नेता/मंत्री अब तक पीड़ित परिवार से मिला ?
खोखली बयानबाजी कब तक करेंगे मुख्यमंत्री और भाजपाई ?
निष्पक्ष जांच और पीड़ितों के साथ न्याय कब होगा? — SamajwadiPartyMedia (@MediaCellSP) September 15, 2022
पीड़ित पिता ने तो तकलीफ के मायने ही बदल दिए:
चूंकि माहौल और तकलीफ ऐसी है कि दर्द की सीमा नही है लेकिन जिसकी दो बेटियां दरिंदे के हाथों में नोची गयी हो और उनको बेरहमी से मार दिया गया हो, उसके बाद अगर उनसे यह पूँछा जाए कि आप क्या चाहते हो तो जवाब सुनकर आपका दिमाग सन्न हो जाएगा, क्योंकि पिता इसे आपदा में अवसर की तरह वसूल करने की मुद्रा में है, उसे अपनी बेटियों का दर्द है या नही इसका अंदाजा सिर्फ इसलिए लगाया जा सकता है कि वह सरकार से अपने बेटे के लिए सरकारी नौकरी की डिमांड कर रहा है, अब इस पर लोग सोशल मीडिया पर अपनी राय रख रहे है, इस मामले पर लोग इतना भड़के हुए है कि उनकी राय यहां रखना भी नैतिक नही होगा।
बुद्धिजीवी वर्ग को लकवा क्यों मार गया:
वैसे तो सरकार का काम होता है अपना बचाव करना, फिर चाहे वह किसी भी पार्टी की सरकार हो, सरकार को लगता है कि उक्त मामला किसी प्रकार दब जाए, हालांकि इस मामले की शुरुआत में दलितों के मसीहा, भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर रावण समेत अन्य लोग शुरुआत से शोर शराबे के साथ मामले में कूदे, लेकिन जैसे ही आरोपियों का धर्म, समुदाय सामने आया तो लगा मानो ये मामला उतना लाइम लाइट में नहीं आएगा क्योंकि सामने वाले पक्ष को विरोध के निशाने पर लाना उन्हें गाली गलौज करना जायज नही रहेगा, इसलिए मौके पर न पहुँचकर केवल वीडियो कॉल करके मामले से पल्ला झाड़ लिया, वो बात अलग है कि अगर आरोपी कोई और होते तो आंदोलन होता।
नजीर देखिए...
यूपी के लखीमपुर खीरी की घटना हृदयविदारक है। मैंने पीड़ित परिवार से बात की है, मैं बहुत जल्द पीड़ित परिवार से मिलने आऊंगा।
यूपी में लाॅ एंड ऑर्डर ध्वस्त हो चुका है। रेप और हत्या की घटना आम बात हो गयी है। अपराधी बैखोफ हैं। मुख्यमंत्री से प्रदेश नहीं संभल रहा है तो वे इस्तीफा दे। pic.twitter.com/f4wuPO03nV — Chandra Shekhar Aazad (@BhimArmyChief) September 15, 2022
तो कुलमिलाकर हालात यह है कि समाज के ठेकेदारों के लिए यह बेहद पशोपेश वाली स्थिति है जहां पर उन्हें निर्णय लेने में असुविधा हो रही है, हालांकि इसके कारण ज्ञात और अज्ञात है, क्या पत्रकारिता, क्या फ़िल्मी दुनिया और क्या समाज सुधारक और क्या राजनेता सबके स्याह चेहरे सामने आ चुके है, लोग शब्दों को तोल कर बोलने पर आमादा है।
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