सूखता तपता बाँदा और सरकारी चोंचले, ढकोसला साबित होते है सरकारी उपक्रम

बुंदेलखंड की जमीनी पड़ताल जिससे आगे आने वाली पीढ़ियों को जूझना है, अगर आज संभल गए तो ठीक है वर्ना एक दशक बाद बुंदेलखंड मरुस्थल से कम नही होगा

May 20, 2022 - 22:23
May 21, 2022 - 00:50
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सूखता तपता बाँदा और सरकारी चोंचले, ढकोसला साबित होते है सरकारी उपक्रम
सूखता तपता बाँदा और सरकारी चोंचले

बाँदा जो कभी बौद्धकाल में 16 महाजनपदों में चेदि राज्य नामक महाजनपद के नाम से जाना जाता था, आज वही विकसित महाजनपद केवल जनपद होकर सिमट रहा है और बची-खुची कसर प्रकृति ने पूरी कर दी है। अगर आप पर्यावरण प्रेमी है और वर्तमान में लगातार बढ़ते हुए तापमान पर नजर रख रहे है तो आपको पता होना चाहिए कि उत्तर प्रदेश का यह जिला दुनिया भर में पहली रैंक पा चुका है किसी अच्छी बात पर नही बल्कि तपन पर दुनियाभर के पंद्रह सबसे गर्म शहरों में बाँदा सबसे गर्म रिकार्ड किया गया। इसने सरकारी आंकड़ों के आधार पर 49 डिग्री की गर्मी पाई जबकि स्थानीय लोगों ने सार्वजनिक क्षेत्र में कार्य करने वाली मौसम वेबसाइट मसलन एक्यूवेदर के हिसाब से 50 डिग्री के आंकड़े को भी कई बार पार किया।इसके बाद दूसरे नम्बर पर  पाकिस्तान का इस्माइल डेरा शहर रह चुका है। ये आंकड़े आपको उस वक्त डराते है जब आपका शहर महज कुछेक दूरी पर नदियों से घिरा हुआ है, पेश है छोटी पड़ताल। 

एकदम से नहीं बढ़ी है तपन:

गर्मियों का क्या है .....वो तो तब से आ रहीं है जब से धरती ने अपनी गति शुरू की, तब से मौसम बारी-बारी से आते रहे है लेकिन अचानक से ये क्या हो गया जो पूर्वी उत्तर प्रदेश का एक जिला जो बहने वाली नदियों से घिरा हुआ हो वह दुनिया की तपन में पहला स्थान पाए ये तस्वीर भयावह भविष्य की स्थिति को उकेरती है। जिसके लिए हम सब उतने ही जिम्मेदार है जितनी सरकारें और सिस्टम, हमने निजी स्वार्थ के लिए कंक्रीट के जंगल खड़े किए, हरियाली और जंगलों को विकास के नाम पर खड़ा किया और नतीजा यह निकला कि आम लोगों को खुद की तैयार की हुई आफत से निपटना पड़ा और सड़कों पर तेज तपिश के चलते राह पर गिरते हुए नजर आए, कुछेक मरे भी होंगे लेकिन जिला प्रशासन के पास ऐसा कोई आंकड़ा नही है। 

खैर मुद्दा यह है कि आखिर बाँदा ही गर्माहट की होड़ में सबसे आगे कैसे निकला ? जबकि अगर औद्योगिकीकरण की बात करें तो यहाँ कल कारखानों के नाम पर कुछ नही है, अगर गर्म होना होता तो नजदीक का महानगर कानपुर गर्म होता, उद्योग के लिए फेमस हमीरपुर का सुमेरपुर कस्बा गर्म होता या जिस कस्बे में दिन भर पत्थर पिस कर हवा में उड़ता है उस कबरई (जिला महोबा) का पारा अपने शबाब पर होता लेकिन ऐसा नही हुआ, गर्म हुआ वह शहर जिसकी करधनी की तरह केन और और यमुना अर्ध परिक्रमा करती है, कारणों को समझने के लिए कुछेक कारण है, जिनको हमें बारीकी से देखना होगा कुछेक कारण हम गिनाए देते है

नदियों से गायब हो रही रेत: 

अगर आप बुंदेलखंड क्षेत्र को जानते है तो यहां का लाल सोना देश के बड़े-बड़े उद्यमियों के लिए आकर्षक का कारण है, और यह आकर्षण है पैसा डबल करने की निंजा तकनीकी, अगर आपके पास अधिकारियों को पैसे खिलाने का हुनर है और आपके पास तगड़ा माल है तो आइए बुंदेलखंड के बाँदा, सरकारी बोलियों में मूल्य बढ़ाकर पैसा दीजिये और सरकार आपको केन /यमुना जैसी नदियों को खोखला करने और उन्हें नक्शे से गायब करने का उपक्रम शुरू कर दीजिए और यही नही एनजीटी समेत सभी सरकारी विभागों के नियम कानून भी आपका कुछ नही बिगाड़ सकते, क्योंकि यहां पैसा बोलता है, यहां एनजीओ, स्वयंसेवी संगठन भी पर्यावरण बचाने की आवाज तब उठाते है जब कोई नया मुद्दा नही मिलता। कुछेक संगठन जो हठधर्मिता के कारण इन मुद्दों को लगातार उठाते रहते है तो उनकी जुबान मुकदमों के प्रभाव से बंद कर दी जाती है और कुछ के मुंह मे बड़े-बड़े नोट ठूस कर मामले को रफा-दफा कर दिया जाता है और कई पर्यावरण प्रेमियों को बलपूर्वक शांत करने के लिए कई बार जिला प्रशासन और पुलिस विभाग का नाम भी कथित तौर पर सामने आया है यही कारण है कि केन और यमुना में रेत माफ़ियाओं और बड़ी-बड़ी कंपनियों द्वारा नदी में पलने वाली रेत जो सतत प्रक्रिया द्वारा बनती है उसे लोभ लालच में आकर एक बार मे ही खत्म करने का बीड़ा उठाया जाता है। नतीजा आपके सामने है, बाँदा की केन और यमुना दोनो पानी से मुक्त तो ही चुकी है अब रेत का संकट भी सामने आ गया है जो पानी को रोकने में अक्षम हो चुकी है और बची हुई रेत केवल आग के मानिंद तप रही है। 

विकाश के नाम पर हरियाली का सर्वनाश: 

माना कि सड़कें और हाइवे किसी देश शहर के विकाश में अभूतपूर्व रोल अदा करते है लेकिन इस कीमत पर जिस शहर का विकाश हो उस विकाश का मुंह उसके रहवासी भी न देख पाए, बाँदा के लिए गोंडा (भरतकूप- चित्रकूट) से कन्नौज तिर्वा तक बनने वाला एक्सप्रेसवे भले ही तेज रफ्तार सड़कें दे लेकिन इस तेज रफ्तार के नाम पर हजारों लाखों पेड़ों को जमीन से काट कर अलग कर दिया गया लेकिन मजाल क्या कि एक पौधा कार्यदायी संस्था द्वारा लगाया गया हो और लगा भी होगा तो इस गर्मी में बिना देखरेख बढ़ेंगे कैसे? ये सवाल सिस्टम से है जिसका जवाब न तो एनएचएआई के पास है ना ही राज्य सरकार के पास। 

यही नही बल्कि हरियाली को खत्म करके पैसे बनाने का ठेका कुछ ठेकेदारों ने भी लिया है जो पैसा बनाने के चक्कर मे वर्षों पुराने पेड़ों को खत्म करने पर आमादा है। अपुष्ट प्राप्त जानकारी में बाँदा शहर की परिधि के आसपास ही कई ऐसी भट्ठियां संचालित है जो हरे पेड़ों को काटकर कोयला बनाने का काम करती है। सूत्रों ने बताया कि खैरार जंक्शन के आगे परमपुरवा गांव जो कि थाना मटौन्ध क्षेत्र के अंतर्गत आता है वहाँ एनजीटी के नियमों को ताक पर रखकर मुख्य सड़क के किनारे चार से पांच भट्टियों को संचालित किया जा रहा है जो प्रतिदिन कई ट्रक हरी लकड़ी को कोयले में बदल देते है और यह सब होता है सिस्टम की नाक के नीचे आबादी से 100 मीटर की दूरी से भी कम और सूखे जलाशय से महज 20 मीटर की दूरी पर। 

सूखते जलाशयों /जलस्रोतों पर अधिकारियों का फोटो शूट जारी है:

इन दिनों बाँदा के सूखते और लगभग गायब हो चुके तालाब और जलाशय बड़े-बड़े अधिकारियों की पिकनिक स्पॉट और फोटोशूट की उम्दा जगह बन चुके है। जिले के आला अधिकारियों द्वारा खोते जा रहे जलाशयों को जीवित करने के लिए लगातार अभियान चलाए जा रहे है तालाबों के किनारे पर पत्रकारों की भीड़ जमा होती है नाश्ते का पुख्ता इंतजाम होता है और तालाबों पर अवैध कब्जे को छुड़ाने के दावे किए जाते है। अधिकारी और नेताओं द्वारा फावड़े और तसले उठाकर लोगों को आंदोलित किया जाता और और ऐसे नाटकीय कार्यक्रम के बाद यही फोटोज सुबह के अखबारों ओर शहर के महाराणा प्रताप चौराहे (जो कि अब टूट चुका है, दोबारा बनाया जा रहा है) पर लगी हुई एलईडी पर महीनों से चल रहा है लेकिन जिन तालाबों से कब्जे को छुड़ाने की बात की जा रही थी वो अब भी वही है, क्योंकि सिस्टम और रसूखदार लोग अपनी मेहनत से कब्जाई जमीनें इतने हल्के में तो नहीं जाने देंगे उसमें राजनीति घुसेड़ी जाएगी सिफारिशों का दौर होगा और आखिर में टॉय-टॉय फुस्स। 

देखना यह होगा कि जिस तपिश में जनपद बासी और शहर वासी जल रहे है उससे प्रदेश और देश के मुखिया का दिल पसीजता है अथवा नही, अगर बुंदेलखंड के बाँदा पर शासन के द्वारा कड़े कदम नही उठाये गए तो भारत का आगामी रेगिस्तान बाँदा ही होगा।  

Shivjeet Tiwari वकालत की पाठशाला में अध्ययनरत बुंदेली लेखक - धर्म से हिन्दू, विचारों से नवोन्मेषी, और पुरातन संस्कृति के साथ नवाचारों के प्रयोग के लिए प्रतिबद्ध