कथित दलित चिंतक दिलीप मंडल महज इसलिए परेशान है कि शेर उग्र है

Dilip mandal news, Ashok Stambh, New Parliament building

Jul 12, 2022 - 09:03
Jul 12, 2022 - 09:09
 0  255
कथित दलित चिंतक दिलीप मंडल महज इसलिए परेशान है कि शेर उग्र है
Dilip Mandal

आपने किसी शादी ब्याह में किसी आदमी का मुँह हमेशा फूला देखा होगा, वह बेवजह ही लोगों पर फर्जी धौंस जमाता हुआ मिलेगा, वो बारात में कमी निकालेगा, दुल्हन के दांत बड़े होने की शिकायत करेगा और बात को इतना भी खींच देगा कि "अगर हमसे पूँछकर लड़के का ब्याह करते तो यकीन मानो बहू विश्व सुंदरी ही मिलती" हालाँकि उस व्यक्ति को कोई सीरियसली लेता ही नही है, वह इस उपेक्षा के कारण कुढ़ता रहता है और वह महान पुरुष होता है रिटायर्ड जीजा, यानी कि फूफा, कमोबेश कथित पत्रकार और कथित दलित चिंतक प्रोफेसर दिलीप सी मंडल इन दिनों उसी फूफा की भूमिका में है, जो हर बात पर गुर्राते हुए देखे जा सकते है। हालांकि उन्हें इस बात से आपत्ति है कि नए संसद भवन में जो शेर लगाया गया है वह गुस्से में है। 

मंडल जी नाराज है:

तो जनाब किस्सा यह है कि किसी नकचढ़ी जेठानी जैसे इन दिनों प्रोफेसर साहब भन्ना रहे है, भाजपा के विपक्ष में बैठे नेताओं के पास जाकर लॉबिंग कर रहे है, हालांकि इसका कितना फर्क पड़ रहा है वो तो मंडल साहब जाने और नेता प्रतिपक्ष, लेकिन हाल में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नवनिर्मित संसद भवन में राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तंभ को स्थापित किया जिसके अनावरण और पूजन इत्यादि में खुद प्रधानमंत्री शरीक हुए लेकिन जैसे ही इस पूजन की तस्वीरें सार्वजनिक हुई लिबरल पत्रकार और स्वयंभू पब्लिक फिगर टेंशन में आ गए दरअसल उन्हें लगा कि अशोक स्तंभ में उनका रजिस्ट्रेशन हुआ है, प्रोफेसर मंडल ने बाकायदा हर विधि को आलोचनात्मक तरीके से देखा, स्तंभ की पूजा को ब्राम्हणों से जोड़कर अशोक स्तंभ के ब्राम्हणीकरण को लेकर आरोप लगाया और मोदी पर इस कृत्य के लिए तमाम तोहमतें लगायी। 

पीएम मोदी को कहा चोर:

अपने सोशल मीडिया पोस्ट में दिलीप मंडल ने साफ-साफ लहजे में कहा कि

ये इतिहास की चोरी है। बौद्ध प्रतीकों का ब्राह्मणीकरण है। इस चोरी के सरग़ना माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं

हालांकि अगर जानकारों की माने तो पूजा पद्धति अलग-अलग प्रकार की हो सकती है फिर चाहे लोग उसे अलग-अलग प्रकार से क्यों न करें लेकिन आखिर मकसद क्या है, देश के राष्ट्रीय चिन्ह को देश की सर्वोच्च संसद में प्रतिष्ठित करना, लेकिन दिलीप मंडल जैसे कथित समाज सुधारकों के लिए आलोचना करने को कुछ न मिलने पर यही मुद्दे जायज लगे। 

राष्ट्रीय चिन्ह का किया अपमान:

राष्ट्रीय चिन्ह केवल राष्ट्रीय चिन्ह होता है, और चिन्ह के बनने में कलाकार के दिमाग की ताकत पर सवाल उठाना बचकानी हरकत से ज्यादा कुछ नही है, प्रोफेसर मंडल के अनुसार शेर की प्रतिमा शांत अवस्था मे नहीं है बल्कि उग्र है, शेर नाराज और परेशान दोनो है, अब मंडल साहब को कौन समझाए की शेर न परेशान है और न ही नाराज है बल्कि असल मे नाराजगी तो मंडल साहब के दिमाग में रची बसी है, जिन्हें हर मामले में ब्राम्हण और स्वर्ण हत्यारे और कातिल नजर आते है, दिलीप मंडल की समूची सोशल मीडिया उसी तरह की गंदगी से पटी पड़ी है। 

क्या है सच?

दरअसल सोशल मीडिया पोस्ट में दिलीप मंडल ने जिस अशोक स्तंभ के संग्रहालय में रखे जाने की वकालत की है वह वास्तव में अशोक स्तंभ है लेकिन अशोक स्तंभ के निर्माण में ऐसी कोई शर्त नही है कि शेर मुस्कराते हुए नजर आने चाहिए या शेर मासूम लगना चाहिए, वहीं चित्रों के जानकार यह भी कहते है कि सोशल मीडिया पर जो तस्वीरें प्रचलित हुई है उनमें जो शेरों के दांत नजर आ रहे है वह कैमरा एंगल की वजह से है, हालाँकि प्रोफेसर दिलीप मंड़ल के अनुसार ऐसा शेर होना चाहिए था जो कमजोर, शांत और पीड़ित नजर आए, उसके दांत तोड़ दिए जाएं जिससे उसकी उग्रता खत्म हो जाये

लेकिन दिलीप मंडल साहब को उनके अनुयायी समझाने में असफल रहे है कि शेर-शेर होता है लोमड़ी नही जो दुम दबाकर बैठा रहे, भले ही मामला चित्रों और तस्वीरों का क्यों ही न हो। 

Shivjeet Tiwari वकालत की पाठशाला में अध्ययनरत बुंदेली लेखक - धर्म से हिन्दू, विचारों से नवोन्मेषी, और पुरातन संस्कृति के साथ नवाचारों के प्रयोग के लिए प्रतिबद्ध