राजनीति की भेंट चढ़ा तालाबों का उत्थान, महज खानापूर्ति शुरू

बाँदा जिले के थाना मटौंध अंतर्गत ग्राम लोहरा- परमपुरवा-ईटवा-पटना के तालाब की जमीन पर दबंगों ने किया कब्ज़ा, सरकार के फरमान के आगे रसूखदारों का प्रभाव भारी पड़ रहा

May 30, 2022 - 09:30
May 30, 2022 - 09:30
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राजनीति की भेंट चढ़ा तालाबों का उत्थान, महज खानापूर्ति शुरू
मड़ौली तालाब-ग्राम लोहरा- परमपुरवा-ईटवा-पटना जिला बाँदा

सरकार भले ही भविष्य को लेकर चिंता में हो लेकिन जमीनी स्तर पर अधिकारीगण इसे पलीता लगाते हुए नजर आ रहे है, इसका ताजातरीन मामला बाँदा जिले के मटौन्ध थाना क्षेत्र के मडौली तालाब से जुड़ा हुआ है। जहाँ पर लोगों ने आरोप लगाए कि पुराने नक्शे में जिस तालाब की 550 बीघे से ज्यादा जमीन थी अब राजनीति के चलते वह महज 220 बीघे मे सिमट चुकी है इस मामले पर उदय बुलेटिन के विशेष एडिटर नीरज तिवारी ने गहन पड़ताल करके जानकारी प्रस्तुत की है। 

तालाब उत्थान के नाम पर खानापूर्ति शुरू:

जैसा कि आप जानते है इस समय बुंदेलखंड पानी की भीषण समस्या से जूझ रहा है और सरकार ने इस समस्या को लंबे समय तक रोकने के लिए सार्थक कदम उठाने भी शुरू कर दिए है लेकिन ये कदम जिले के अधिकारियों द्वारा पैरों में बेड़ियां डालकर रखने शुरू किए है।

मामला उत्तर प्रदेश के बाँदा जिला की सदर तहसील के थाना मटौन्ध क्षेत्र अंतर्गत ग्राम लोहरा- परमपुरवा-ईटवा-पटना के मध्य स्थित चंदेलकालीन तालाब मड़ौली तालाब से जुड़ा हुआ है। जहां पर ग्रामीणों की लंबे वक्त से शिकायत रही है कि रसूखदार लोगों द्वारा तालाब की नुजूल जमीन पर कब्जा करके तालाब को नष्ट किया जा रहा है। ऐसे वक्त में सरकार द्वारा फरमान जारी किया गया कि पुराने जलस्रोतों और तालाबों को पुनर्जीवित किया जाना चाहिए और जिला प्रशासन द्वारा इस मामले पर तालाब की पैमाइश कराकर निशान लगवाए गए लेकिन जैसे ही इस तालाब की पैमाइश का सिलसिला शुरू हुआ वहीँ पर तालाब की जमीन पर खेल होना शुरू हो गया। 

जानकारों के मुताबिक इस तालाब का क्षेत्रफल 550 बीघे से भी ज्यादा आंका गया है और1950 के नक्शे में इसके आसपास ही जमीन अंकित कि गयी है लेकिन अब इसे कब्जेदारों की सत्ता पर पकड़ या फिर रसूखदारी कहा जाए, तालाब महज 220 बीघे की जमीन में समेट दिया गया है। अब तक इस मामले में दो बार जिले के बड़े और आला अधिकारियों की तालाब की मेड़ पर बैठकर मीटिंग हो चुकी है, जिसमें तालाब के सीमावर्ती गांवों के ग्राम प्रमुख (प्रधान) से लेकर अन्य गणमान्य लोग शामिल रहे लेकिन किसी भी व्यक्ति ने सच को कहने की जहमत नही उठायी। 

बार-बार चल रहा मीटिंग्स का दौर:

विशेष एडिटर नीरज त्रिपाठी ने पड़ताल में जानकारी साझा करते हुए बताया कि क्षेत्र में अपनी-अपनी जमीनों को बचाने का दौर लगातार जारी है, साँठ-गांठ से लेकर अन्य तमाम उपक्रम बदस्तूर जारी है जिससे अवैध तरीके से कब्जा किये हुए लोग तालाब की जमीनों को अपने कब्जे से किसी तरह से बाहर नही देना चाहते।

सब जगह चल रही खाना पूर्ति: 

अगर जानकारों की माने तो यह मड़ौली तालाब का असर केवल खेती तक सीमित नही है बल्कि चारागाह के अलावा वाटर लेवल दुरुस्त करने के लिए मुख्य साधन है, जिसको युद्धस्तर पर कराया जाना आवश्यक है लेकिन जमीन के कम होने से महज कागजों पर तालाब सीमित हो जाएगा जिसका दुष्प्रभाव लंबे समय बाद नजर आएगा। 

Shivjeet Tiwari वकालत की पाठशाला में अध्ययनरत बुंदेली लेखक - धर्म से हिन्दू, विचारों से नवोन्मेषी, और पुरातन संस्कृति के साथ नवाचारों के प्रयोग के लिए प्रतिबद्ध