कृषि बिलों के वापसी का दंश झेल रहा बुंदेली किसान, आढ़तियों के हाथों है कमान

आंदोलन के बाद किसान से जुड़े तीनों बिल तो वापस हो गए लेकिन इससे किसानों का फायदा होने की बजाय नुकसान हो रहा है, अब किसानों की फसल का मूल्य निर्धारण आढ़तियों के हाथ में है

Apr 18, 2022 - 09:24
Apr 18, 2022 - 09:36
 0  174
कृषि बिलों के वापसी का दंश झेल रहा बुंदेली किसान, आढ़तियों के हाथों है कमान
किसानों की फसल का मूल्य निर्धारण आढ़तियों के हाथ में

आपको बीते समय के कृषि आंदोलन तो याद ही होंगे, जिनको संचालित करने के लिए किसी अज्ञात तंत्र ने किसानों को आगे करके कृषि बिलों को बापसी का रास्ता दिखाया सरकार ने भी आंदोलनकारियों के आगे घुटने टेक दिए और किसानों के लिए जो मूल्यवृद्धि की उम्मीद बंधी थी वह आढ़तियों के हांथो में उलझ कर रह गयी। अपनी फसल को लेकर बुंदलेखंड का किसान सबसे ज्यादा ठगा और शोषित महसूस कर रहा है, हालत यह है कि किसान न तो अपनी फसल को बेचने की हालत में है और न ही फसल को भाव बढ़ने तक रोकने की स्थिति में है।

पेश है बुंदेली किसानों से जुड़ी हुई पुख्ता रपट.....

बुंदेलखंड के किसान जो चारो तरफ से मार खा रहा है:

दरअसल बुंदेलखंड के किसान देश के उन किसानों में शुमार है जो हमेशा से घाटे की खेती करता आया है, बुवाई करते समय मौसम की प्रतिकूलता, बीजों की अनुपलब्धता, खाद, और उर्वरकों की कम आवक जहां एक ओर किसान को तोड़ती है, वहीं बिन मौसम बरसात, सिंचाई के लिए पानी न मिल पाना किसान को उम्मीदों से दूर कर देती है। वहीं महंगी कटाई, फसल की कतराई, सरकार द्वारा उपलब्ध योजनाओं का अभाव किसान को और दुर्गति में खड़ा कर देता है। लेकिन असल समस्या तब आती है जब किसान जी तोड़ मेहनत करके जैसे-तैसे फसल को खड़ा करता है, महंगी प्रणाली का उपयोग करके फसल के दाने को घर पर लाता है उसके बाद जब वह उस फसल को बेचने बाजार लेकर जाता है उस वक्त बिचौलियों और आढ़तियों द्वारा उसकी फसल का नगण्य मूल्य उपलब्ध कराया जाता है। यही कारण है बुंदेलखंड के किसान बीते 4 दशक से कोई प्रगति नही कर सका है। 

आढ़तियों और बिचौलियों का मकड़जाल:

अगर हम बुंदेलखंड के किसानों की बात करें तो यहां का किसान मूलरूप से आढ़तियों के जाल में फंसा हुआ नजर आता है, चूंकि सरकारी खरीद केंद्रों पर गिनी चुनी फसलों की खरीदी की जाती है, जिसमे गेंहू, धान और कुछ मात्रा में चना भी जुगाड़ लगाकर खरीदा जाता है, बांकी अन्य दलहन, तिलहन, खासकर मटर, सरसों, अलसी, अरहर ,मूंग, मसूर इत्यादि की फसल केवल और केवल ठेकेदारों, आढ़तियों द्वारा ही खरीदी जाती है, यही कारण है आवक देखकर दलाल खरीददार  बेहद कम दामों में किसानों को फसल बेचने पर मजबूर कर देते है। बुंदेलखंड के बाँदा जिले अंतर्गत जहां का किसान मौसम अनुकूल और कम पानी मे पैदा होने वाली ( मौसम आधारित फसल) मटर का उत्पादन ज्यादा करता है, मौसमी झंझावातों के बाद जो कुछ फसल किसान पैदा कर रहा है उसका रेट ( हरा मटर 3500 रुपये प्रति क्विंटल प्रजाति दंतेवाड़ा) बिक रहा है, जबकि किसान ने फसल बोते समय इन्हीं ठेकेदारों से 11000 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बीज खरीद कर बोया था। 

(हरा / दंतेवाड़ा मटर)

वहीँ सफेद मटर ( कनाडा, प्रकाश, पीके 3, उषा 10, ) 4400  बिक रहा है जिसे किसान ने 8000 रुपये से लेकर 9000 रुपये प्रति क्विंटल तक लेकर बोया था

(सफेद मटर)

किसान कर सकते है आंदोलन:

अगर बुंदेली किसानों की बात मानी जाए तो यहां का किसान उस स्थिति में नही है कि वह इन दलालों के विरुद्ध माल को रोककर भाव बढ़ाने की उम्मीद में रुक सके, क्योंकि हालात यह है कि यहां का किसान मूलरूप से किसानी फसल पर ही निर्भर है, यहां एमएसपी जैसी कोई चीज नही बची जिसकी आड़ में रहकर दलाल आढ़ती किसानों का लगातार शोषण कर रहे है। 

यहां पर किसानों के पास केवल  केवल एकमात्र विषयवस्तु बची है कि वह इस मामले को लेकर आंदोलन करे और शोषक आढ़तियों के खिलाफ आन्दोलनरत हो जाये। 

चूंकि ये आढ़ती किसानों के माल की जमाखोरी करके आगे आने वाले समय मे यही अनाज आसमानी कीमतों पर बेचेंगे, यही कारण है कि किसान आंदोलन की तैयारी कर रहे है जिसका खामियाजा इन जमाखोरों को भुगतना पड़ सकता है।