सुखी धरती, तपता सूरज, बंजर होते ताल तलैया के बीच सिसकता लखनऊ, हालात न सुधरे तो हलक तर करने की गुंजाइश रह जाएगी। लखनऊ आज के तारीख में भू-गर्भ जल स्रोत छरण का सबसे बड़ा सच बनकर सामने है। भू-गर्भ जल स्तर जिस तेजी नीचें खिसक रहा है उतनी ही तेजी से हम और आप उसके दोहन से भी बाज नहीं आ रहे हैं। खतरे का संकेत सामने हैं लेकिन आज तक जल प्रबंधन की कोई नीच सामने हैं और न ही जल संरक्षण गंभीरता को समझने की कोई कोशिश कर रहा था।
चौकानें वाले आंकड़ें आने वाले कल की तबाही का मंजर पेश करते हुए सामने है। वाटर हार्वेस्टिंग शून्य है, पानी जो पी रहे हैं। उसमें जहर बुझी सच्चाई के साथ कहना पड़ता है, जल ही जीवन नहीं फिलहाल जल दस्तक देकर मौंत का दावत देता हुआ सामने हैं। सरकारी आंकड़ों के आईने चलिए लखनऊ शहर की आबोहवा के साथ तपते सूरज के छ्लावे सूखते जल स्रोतों पर निगाह डालने की कोशिश करते हैं। बक़ौल लखनऊ जल कल विभाग, शहर के छाती को भेदते हुए 60 हजार सबमर्सिबल पानी का दोहन कर रहे है, इस सरकारी आंकड़ें है जो हकीकत से दूर नजर आते है।
ये उस शहर की दास्तां है जहां 45 लाख लोग स्थायी तौर पर निवास करते है और 10 लाख की भीड़ उन लोगों की कहीं जा सकती जो शहर में आते जाते रहते हैं। लखनऊ में प्रतिदिन 8 हजार लेकर 9 हजार मिलियन लीटर भू-गर्भ जल का प्रतिदिन दोहन होता है, वहीं राजधानी के कई इलाकों में भू-गर्भ जल स्तर 20 मीटर तक नींचे जा चुका हैं। ये आंकड़ें नहीं ये आने वाली भयावाह सच की तस्वीर हैं। अब न चेते तो समझना होगा न कल समय रहेगा न गुंजाइश अपने को समझने व सुधारने की।
चेतावनी और चुनौती के बीच समझना होगा इसी शहर में 400 से ज्यादा औद्यौगिक इकाईयां ऐसी हैं जो बिना इजाजत धरती के पानी का गैर कानूनी ढसे इस्तेमाल कर रही हैं जबकि मैनेजमेंट रेगुलेशन एक्ट 2019 कुछ गाईडलाइन जारी की गई इजाजत लेना जरूरी है। ग्राउंड वाटर एक्ट के तहत यदि बिना इजाजत के आप जब कोई औद्यौगिक इकाई एक्ट का उलंघन करती है तो दो से पांच लाख का जुर्माना व 6 माह से एक साल की कैद हो सकती है। लखनऊ की बिगड़ती आबोहवा, बेकाबू आबादी और विकास की गैर जरूरी सच्चाई पर निगाह डालें तो सबसे ज्यादा खराब स्थिति शहर के अंदर ही नहीं बल्कि उससे मिलें हुए इलाकों की ही कहीं जा सकती है।
जिस शहर में सूखते जल स्रोतों के बावजूद 750 सरकारी और 550 निजी ट्यूबल हर रोज बेतहाशा जमीन के पानी का दोहन कर रहें है वो किसी दूरगामी नीति का उदाहरण नहीं कहीं जा सकती। लखनऊ कभी बाग-बगीचों का शहर कहां जाता था और आज विकास की लम्पट चाह ने हरियाली लील ली गई और लाभ की चाहत ने तलाबों को रियल स्टेट का बगीचा बना दिया। हकीकत के दामन में सूखते मुहल्लों का जिक्र बहुत जरूरी है।
लखनऊ में भी कभी 11269 तालाब हुआ करते थे, वर्षा जल को समेटे तालाब सरफेस जल स्तर और भू-गर्भ जल स्तर दोनों को बखूबी बनाय रखते थे। समय के साथ 1592 तालाबों को पाट कर कब्जा कर लिया गया। जब संकट बढ़ा हाकिमों को होश आया जिसमें तब इन्हे अवैध कब्जे से मुक्त कराया गया।
19 मई 2017 एक रिपोर्ट कैग की नदियों और मौजूदा हकीकत प्रदेश की प्रायः सभी 12 प्रमुख नदिया और 6 जलाशय ये पानी की गुणवत्ता के मुताबिक नहीं। सभी घुलित आक्सीजन की मात्रा मानक से कहीं कम है। बिना सहमति के चल रहें उद्योग बंद हो नियमित निरीक्षण व कठोर दंड की व्यवस्था हो। सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट योजना को प्रभावित तरीके से लागू करने को जरूर।
लखनऊ का ‘महानगर’ विस्तारित योजना का पहला पड़ाव कहां जा सकता है। ईसी कड़ी से आंकड़ों के जानिब जब भू-गर्भ जल पर निगाह डालतें है तो रूह कंपा देने वाली सच्चाई नजर आती है। तेजी से रिसता जल स्तर संकेत के साथ चेतावनी है कि आज और अभी प्रबंधन का खाका खींचों, उसे जमीन पे उतारों या बूंद-बूंद पानी के लिए तरसती भीड़ का मंजर देखने को तैयार रहो।
कुछ साल पहले यहां का भू-गर्भ का जल स्तर 27.67 मीटर दर्ज किया गया था और आज ये घटकर 41.06 मीटर से भी नीचे चला गया है। मतलब जमीन खोदते जाओं, ड्रिलिंग की बड़ी-बड़ी मशीनों के जरिए धरती के रेशे-रेशे को रौंदते जाओं फिर भी पानी खोज न पाओगे। इसी हकीकत से दो-चार होता आज का सच है महानगर।
पारा – पिछले दस सालों का रिकार्ड खतरे के संकेत के साथ खबरदार करता सामने हैं। कभी यहां का ग्राउंड वाटर लेवल 10.65 मीटर दर्ज किया गया था। उसके बाद जल स्तर नीचे खिसकता हुआ 20.30 मीटर पर थमा। जल स्तर गिरावट की यह रफ्तार धीरे-धीरे बेपनाह चुनौतियों के बीच 36.25 मीटर गहरी होती हुई सामने हैं। मतलब जो पानी कुछ साल पहले जमीन को खोदते हुए 10 मीटर की गहराई में मिल जाता था उसके लिए अब जमीन को 36 मीटर की गहराई तक भेदना पड़ता हैं।
फैजुल्लागंज – लखनऊ का सबसे चर्चित क्षेत्र, बीमारियों का गढ़, गंदगी और बेतरतीब विकास की सच्चाई को समेटे इस मुहल्ले में यदि कुआं खोदना हो तो आपको लगभग 40 मीटर जमीन के नीचे झांकना होगा तब कहीं जाकर पानी के दर्शन संभव है। 2017 में यहां भू-गर्भ जल स्तर 27.21 मीटर था, जो 12.57 मीटर गिरकर 2023 में 39.88 मीटर हो गया। ये क्यों हुआ, कारण क्या था, जिम्मेदार कौन है आजतक इस भयानक त्रासदी के जिम्मेदार चेहरों की ज़िम्मेदारी तय करने की कोशिश तक नहीं की गई।
विक्टोरिया पार्क चौंक – यहां का जल स्तर में पिछले 9 साल के दौरान 11.46 मीटर की गिरावट दर्ज की गई। मतलब उस क्षेत्र का जल स्तर कभी 30.16 हुआ करता था आज के तारीख में वो गिरकर 18.70 मीटर शेष रह गया है। गिरावट की ये रफ्तार ऐसे ही जारी रही तो आने वाले दशक में विक्टोरिया पार्क यानी लखनऊ की वो पहचान जो कभी इस शहर की धड़कन हुआ करती थी, निश्चित जानिए वो धड़कन ही ठप हो जाएगी क्योंकि जल ही जीवन हैं तो जल ही खुशहाली का स्रोत है।
इन्दिरा नगर सेक्टर-c – नए लखनउ की नई पहचान, शहरी विकास की पहली धड़कन यानी इन्दिरा नगर। इसी नगर का एक भाग सेक्टर-C कहलाता है। यहां का भू जल स्तर कभी 26.15 मीटर हुआ करता था जो गिरकर आज लगभग 40 मीटर पर आ गया है। न धरती ने पानी सोखा, न ही जमीन बंजर थी तो फिर धरती का कोख का पानी क्यों दूर होता चला गया। ये सवाल भी सवाल ही रह जाएगा क्योंकि हम विकास का खाका तैयार करने में जो माहिर थे उन्होने बगैर सोंचे आने वाले कल में विकास की ये इमारत सूखे की इबारत लिखते हुए कैसे मुंह चिढ़ाते हुए सामने हैं। इस शायद विचार करना जरूरी नहीं समझना था।
गोमती नगर विनय खंड – लखनऊ का पॉश इलाका, साहबों की बस्ती, घर घर धरती का पानी खींचने के लिए सबमर्सिबल पम्प, बेशुमार पानी का इस्तेमाल, बगीचों की कतार, गाड़ियों की धुलाई कुत्तों की साफ सफाई के बीच विनय खंड लखनऊ का आबोहवा का खंडित सच हैं। यहां का ग्राउंड वाटर लेबिल 26.94 से गिरकर आज के तारीख 35.88 मीटर दर्ज किया गया है। ये आंकड़ें चंद माह पहले के है इस बीच गिरावट का ग्राफ यदि पहले की तरह जारी रहा तो निश्चित तौर पर विनय खंड पानी के बिना तरसता मात्र सूखा भू-खंड ही रह जाएगा।
मलिहाबाद – सबसे बड़ी तस्वीर का बिखरा सच मलिहाबाद कहां जा सकता हैं। यहां ग्राउंड वाटर लेबिल 57 सेंटी मीटर के गति से प्रति वर्ष नीचे खिसक रहा हैं। इसी मलिहाबाद तहसील क्षेत्र में कभी 8 बीघा में फैली ससपन झील हुआ करती थी। जिसपर भू माफियाओं ने अवैध कालोनी देखते देखते खड़ी कर दी। झील बंजर हो गई जब मामले ने तूल पकड़ा तब हाकिमों को होश आया और तलाब को अवैध कब्जे से मुक्त कराया गया।
बख्शी का तालाब – जिसके नाम में तालाब जुड़ा हो उस तालाब का दायरा और पहचान क्या होगी ये आसानी से समझा जा सकता है। तालाब कभी पानी से लबालब रहता था। लोगो की प्यास ही नहीं बुझाता था बल्कि सही मायनों में तीर्थ स्थल भी था। आज की तारीख में तालाब सुख गया है और शेष रह गया उसका नाम।
बिजनौर – भू माफियाओं का दुस्साहस देखिए 15 हेक्टेयर में फैले तालाब को पाट कर प्लाटिंग कर दी गई और विभाग गफलत की नींद में खामोश रहा।कुल मिलाकर कहां जा सकता हैं, कुछ तुमने किया, कुछ हमने किया पर लखनऊ ने क्या गुस्ताखी की उसकी छाती को भेद कर तबाही का मंजर पेशआन कर दिया।
कोई तो बताये आलमबाग, आशियाना, नटखेड़ा, आजादनगर, कृष्णानगर और बख्शी का तालाब भी पूरे लखनऊ के भू-गर्भ जल स्तर को सामान्य बनाये रखते थे। वहां के तलाबों को कौन लील गया। पानी से लबरेज, पक्षियों के कलरव से गूँजते हरियाली के बाग बगीचे कैसे रियल स्टेट की चाहत भरी सच्चाई में समा गए।
हर बूंद का मायने समझों वरना….
– नीती आयोग चेतावनी के साथ आने वाले कल की खौफनाक सच्चाई को बयां करते हुए सामने हैं। भारत के 21 बड़े शहर में भू-गर्भ जब लगभग खत्म होने के कगार पर है। हालत ऐसी रही तो 40 करोड़ आबादी बिना पानी के त्राहीमाम करते हुए सामने होगी। इतना ही नहीं वर्षा जल संचयन नीति को तुरंत सख्ती के साथ लागू न किया गया तो 2030 तक 40 फीसदी भारतीय पीने के पानी को तरस जाएंगे। भारत विशाल आबादी के साथ कई चुनौतियों से जूझता हुआ सामने है उनमें से आज की तारीख में सबसे बड़ी चुनौती जल संकट के रूप में सामने हैं।
– जल संशोधन साधन के मसले पर भारत कहीं बहुत पीछे खड़ा नजर आता है। मात्र 4 फीसदी जल संशोधन की क्षमता भारत के पास है जबकि दुनिया के आबादी का 17 प्रतिशत भारत में हैं और 15 फीसदी मवेशी भारत में पाए जाते है। भारत की व्यापक जरुरतों देखते हुए ठोस प्रबंधन की आवश्यकता है। उसके ठीक विपरीत पानी की बर्बादी और उसके संग्रह के मसले पर बहुत पीछे खड़े नजर आते है।
वर्षा जल की बर्बादी जल संकट का सबसे बड़ा कारक है, जबकि भारत मानसून पर निर्भर रहने वाला देश हैं। समझना होगा सरफेस वाटर और ग्राउंड वाटर से ही हमारी जरूरते पूरी होती है। सरफेस वाटर में नदियां व झीलें आती हैं। भू-गर्भ जल की निर्भरता भी मानसून पर रहती हैं। हालत जब सीमा लांघ जाती तब हम शायद चेतने का नाटक करते वरना भारत जैसे देश में खतरे का संकेत देते वाटर प्यूरिफायर पर बहुत पहले रोक लग जानी चाहिए थी। हालत देखिए, एक लीटर पानी साफ करने के लिए ये चार लीटर पानी बर्बाद कर देता है।
पानी नहीं जहर पी रहें
केंद्र सरकार कुछ दिनों पहले संसद में एक चौंकाने वाली रिपोर्ट पेश की थी, जिसमें पेयजल के उन आंकड़ों को जिक्र था। जिसमें ऐसे रसायन तत्व मिले हुए जो जीवन मरण का प्रश्न बन सकते है। रिपोर्ट में सरकार ने माना प्रायः सभी राज्यों के ज़्यादातर जिलो में जहरीले धातुओं के मात्रा मानक से कई ज्यादा हैं।
देश के 671 रिहायशी इलाकों में क्लोराइड, 814 क्षेत्रों में आर्सेनिक, 14079 इलाकों में आयरन, 9930 ऐसे क्षेत्र है जहां खारा पानी बड़ी समस्या बनकर सामने हैं। वहीं 517 इलाकों में नाइट्रेट की मात्रा मानक से ज्यादा पाई गई, जबकि 111 चिन्हित क्षेत्र ऐसे है जो विभिन्न धातुओं से प्रभावित है।