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और अब जातीय पूछों अपराधी की

Sukirt
Last updated: अक्टूबर 5, 2024 6:21 अपराह्न
By : Sukirt Published on : 8 महीना पहले
अब जातीय पूछों अपराधी की
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मुंगेश यादव कई सवाल छोड़ गया, और सवाल के संजाल में तमाम प्रश्न कुछ यूं उलझे की अब न जवाब सूझ रहा है न ही किसी अपराधी की कुंडली का बहीखाता पेश किया जा रहा हैं। मसला ये नही की सामने वाले की जाति या धर्म क्या था। मुद्दा है सियासत के दांव पेश का हैं, फायदे और नुकसान का है लेकिन अंकड़ें की कहानी कुछ और बयां करते हुए सामने हैं।

जातीय समन्वय की बेहतरीन गाथा समेटे एक नेता जी फरमाते हैं कि उत्तर प्रदेश में एनकाउंटर जाति के आधार पर हो रहा हैं। फिलहाल बजरिए आंकड़े हकीकत कुछ और बयां करते सामने हैं। सियासी चेहरे जब मर्यादाहीन हो जाते हैं। तब विषय मूल मुद्दों से इतर उन बिन्दुओं पर आकर टिक जाते हैं, जिससे जातीय विशेष की भावनाए आहत हो, चुनावी समीकरण का एक नया प्लेटफॉर्म भावनात्मक रूप से तैयार हो सके।

वरना एक अपराधी की मौत या एनकाउंटर पर सनसनी खेज बयानों का दौर नजर न आता और न ही इस तरह की हरकत करने की हिम्मत बटोर पाता। उत्तर प्रदेश की सियासी जमीन पर फिलहाल जातीय उन्माद का काढ़ा जिस तरह से सुर्खियां बटोर रहा है उसकी नौबत न आती। अखिलेश यादव भले ही अपराध व अपराधियों को जाति के ताने-बाने में उलझाने की कोशिश करें लेकिन आंकड़ों की ज़बानी कुछ और कहानी कुछ और बयां करती सामने हैं।

2017 से 2024 के एनकाउंटर आंकड़ें पर गौर करें तो कहानी में एकरूपता नजर नहीं आती। बस अपराध व अपराधी निशाने पर थे। लेकिन मौहोल कुछ ऐसा तैयार करने की कोशिश की जा रही कि बिकुरु का दुर्दांत अपराधी विजय दुबे मारा जाता तो ब्राह्मण कार्ड भावनाए आहत हुई और जब मुंगेश यादव मारा गया तो इसे यादव उत्पीड़न कि संज्ञा से नवाजा गया। पिछले 16 महीनों के आंकड़ों पर निगाह डालें तो इस बीच हुए एनकाउंटर में 9 अपराधी मारे गए थे।

जिसमें एक जाट, तीन मुस्लिम, एक ब्राह्मण और यादव थे। ब्राह्मण में विनोद उपाध्याय, राशिद कालिया और शहनूर उर्फ शानू मुस्लिम जमात से थे। राजपूत जाति के सुमित कुमार उर्फ मोनु चवन्नी व नितेश कुमार, वहीं यादव समाज से पंकज यादव व मुंगेश यादव को STF ने मार गिराया था। आंकड़ों के बही खाते में यादव की संख्या अन्य अपराधी के मुक़ाबले कहीं कम नजर आती हैं। इसका जवाब संभवता सामने न आ पाए।

क्योंकि सियासत की पगडंडियों के रास्ते जब धर्म और जाति के आधार पर तय होने लगते है तब समझना होगा लोकतन्त्र के बही खाते में योजनाओं व विकास की रूप रेखा दर्ज नहीं होती। जब जरूरत होती हैं तब सत्ता के चरम सुख पाने के लिए कोई भी रास्ता अपनाने से गुरेज नहीं। मुंगेश यादव अपने में एक अपराधी था ये बात दीगर हैं। फिलहाल सत्ता के गलियारें उसे सुल्तानपुर ज्वैलरी लूट कांड का डकैत बता रही हैं।

जाति आधार पार्टियां उसे शहीद से कम मानने को तैयार नहीं हैं। ये समझना जरूरी की अपराधी उत्तर प्रदेश में इस तरह जातीय लबादा ओढ़कर राबिनहुड बनने की तमन्ना रखते हुए, राजनीतिक दलों के सुरक्षा कवच बन जाते हैं। फिलहाल मसला ऐसा नैरेटिव बनाने का हैं की जाति विशेष को लगे कि उसे निशाना बनाया जा रहा हैं।

मसला चर्चा का विषय बने असुरक्षा कि भवना बने और मौजूदा व्यवस्था के खिलाफ आक्रोश परवान चढ़े। चुनावी बिसात पर यहीं नैरेटिव समुदाय विशेष फतह का परचम फैलाने का कारक बन सके।

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