मोहब्बत की दुकान 2024 में खुली, थोड़ी बहुत चली, फिर लहजा बदला, रंग रौगन कर पुरानी काया में नए तेवरों की खुराक दी गई। लगा देश में बदलाव का तूफान बवंडर में बदल गया। 99 के चक्कर में मोंची से लेकर दर्जी की दुकान तक नाप डाली। फोटो शूट की बेहतरीन फोटो को छांटकर सोशल मीडिया को अर्पित कर दी गई। फिर आंकड़ों के जरिए बताया कि युवराज सोशल मीडिया में सबसे ज्यादा पढे व देखे गए।
समर्थकों और चमचों कि एक खास टोली को सोशल मीडिया में युवराज को लाइक करने कि निर्देश हुआ और एक लाइन में लिखने का आदेश, “हमारे भावी प्रधानमंत्री”। युवराज भले ही एक सांसद मात्र हैं लेकिन उनके हैसियत उस सेठ कि तरह है जो दुकान चलाता हैं और उसके कर्मचारी सेठ कि जी हुज़ूरी कर, अपनी नौकरी पक्की करने में ही भलाई समझते हैं।
तो भावी प्रधानमंत्री कम युवराज देश में गंभीर विषयों को उठा नहीं पाते लेकिन प्रहशन की जिम्मेदारी बेहतर तरीके से संभालते हैं। आज कल सुना हैं, अमेरिका की सैर पर हैं, भारत विरोधी चेहरे उनका खैरमकदम कर रहे हैं, अच्छा लगा सुनकर। इतना तक तो ठीक था, लेकिन पता नहीं क्यों अचानक राजकुमार का माथा सनक गया।
एक अपने देसी पत्रकार ने बांग्लादेश में हिंदुओं की हत्या से संबन्धित प्रश्न पूछने की गुस्ताखी कर डाली, ये देसी पत्रकार वाशिंगटन में तैनात हैं। सवाल के साथ ही मोहब्बत की दुकान का शटर बंद हुआ और चमचे रूपी कर्मचारी पत्रकार महोदय पर टूट पड़े। देश में आवाज रोकने के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले राजकुमार के समर्थकों ने सुना हैं, देसी पत्रकार की बजरिए लात घूसों से इज्जत बख्शी, उनका फोन छीना और बांग्लादेश के हिंदुओं पर पूछे गए सवाल को जबरन डिलीट कर दिया।
मोहब्बत की दुकान के अपने नियम कायदे हैं। कोई नियम तोड़ेगा तो पिटेगा, फिलहाल हिंदुस्तान की पत्रकार बिरादरी जो कल तक मोहब्बत की दुकान की सबसे बड़ी ग्राहक थी, फिलहाल खामोश हैं। वह महान पत्रकार जो मोहब्बत की दुकान की स्थायी ग्राहक हैं, हिन्दी अंग्रेजी दोनों मे अपने विचार देते व लादते हैं, ये वही पत्रकार हैं। जिनकी पत्रकार बीबी को ममता बनर्जी ने राज्यसभा का माननीय बनाकर उपकृत किया, फिलहाल सब चुप हैं।
कभी जिला स्तर के पत्रकार के मसले पर जो पत्रकार बंधु सड़क पर उतर आते थे। आज मोहब्बत की दुकान के चलते खामोश हैं। शायद गांधीवाद के सिद्धान्त के वह समर्थक हैं। जिसमें एक गाल पर थप्पड़ पड़ने पर दूसरा हाजिर करने का नुस्खा दर्ज हैं। इंतजार हैं मोहब्बत की दुकान के मालिक, भारत की धरती को धन्य करने, अमेरिका से हिंदुस्तान कब लौट रहे हैं। एक बात समझ से परे हैं कि मोहब्बत की दुकान का मालिक जब भी विदेश जाता हैं, तब भारत के खिलाफ जहर क्यों उगलता हैं।
नफरत किसके खिलाफ, अपनी असफलताओं का नतीजा या अपने पूर्वजों के अच्छे विचारों से मोहब्बत की दुकान वाले को नफरत हैं। पता नहीं क्या साबित करने की चाहत में देवी देवताओं के अपमान शगल बना दिया, भारत के खिलाफत का मतलब तलाशें तो ये शख्श शहरी नक्सली का दुशाला ओढ़कर एक खास तब के लिए नाटक करता नजर आता हैं या टुकड़े-टुकड़े गैंग के जनक, JNU का उत्पादित चेहरा उनकी स्क्रिप्ट लिखता हैं।
चीन से राजकुमार का लगाव, उनके पार्टी का चीन से चंदा लेना गजब की तासीर का नमूना हैं। मोहब्बत की दुकान के मालिक की एक तरफ पत्रकार की पिटाई हो जाती हैं तो दूसरी ओर राजकुमार फरमाते हैं, हिंदुस्तान में सिख समुदाय बिना आज्ञा के पगड़ी नही पहन सकते।
सिख समुदाय जो अपनी कुर्बानियों का सच हैं, देश की सुरक्षा का सैन्य कवच हैं, बलिदान जिसकी परम्परा का सत्य हैं। उसकों क्यों उद्वेलित करते हो। खालिस्तानी पन्नू उनकी सहमत व्यक्त करता है। ये भारत की अखंडता के लिए सबसे बड़ी चुनौती के साथ खतरा भी हैं। मोहब्बत की दुकान विगत 11-12 साल में फलफूल नहीं पाई तो क्या मोहब्बत की जगह बगावत का पोस्टर लगाकर दुकान चलाएंगे।
चुनाव आयोग पसंद नहीं, सरकार पसंद नहीं, विकास पसंद नहीं, उन्हें पसंद हैं भारत के सबसे बड़े दुश्मन नशीले पदार्थों की तस्करी करने वाले जार्ज सोरोस। मोहब्बत-नफरत की दुकान के मालिक और उनकी माता से संबंध जार्ज सोरेस से छिपे नहीं हैं। जो अमेरिका सांसद कश्मीर के खिलाफ आग उगलती हैं। वह इल्हान उमर राजकुमार की बैठकों की शोभा बढ़ाती हैं।
प्रमिला जयपाल सहित विदेशी सरकारों के तख़्ता पलट के हीरों माने जाने वाले डोनाल्ड ब्लू से मोहब्बत की दुकान के मालिक बड़े मोहब्बत से मिलते हैं। राजकुमार नफरत की दुकान के एक ऐसे चेहरे हैं जो देश में रहकर देश को ही छिन्न-भिन्न करने की मंशा रखता हैं। समझ से परे हैं राजनीति की किस पगडंडी को पकड़कर महोदय सफलता का परचम लहराने की मंशा रखते हैं।