ये कूड़ा भी गज़ब का फितरती है। वो उठाते हैं पर वो उठता नहीं। गीला-सूखा के बीच फंसकर वो दावों की इबारत लिख जाते हैं। कूड़े की पसरी सच्चाईयों के बीच लखनऊ के चौबारों का जिक्र कर लखनऊ की खूबसूरती के इजहार को कागजों में उतार कर फाइलों को ही कचड़ा बना डालते हैं।
मज़ाक उनकी आदत है और मज़ाक के बीच खुद का मज़ाक बनाने की अदाकारी लखनऊ की अपनी नफासती खूबी है। कर लो मज़ाक, घूम आओ इंदौर, बुला लो साफ सुथरे हैदराबाद के मेयर व पार्षदों को। देखते हैं कौन किसके लपेटे में आता है। इतना जान लो हम बदलने से रहे, बस डर है तुम हैदराबाद को लखनऊ न बना दो।
खबर है कि मैले आंचल को समेटे मेयर महोदया इंदौर घूम आयीं, गीले व सूखे कचड़े का तकनीकी ज्ञान हासिल कर लौट भी आयीं। जब ज्ञान की बात सामने है, तो अटल बिहारी वाजपेयी के वो सपने याद आते हैं, जो सांसद होने के नाते उन्होंने लखनऊ के निस्बत देखे और सोचे थे।
लखनऊ के सांसद होने के नाते उन्होंने तब कचड़ा निस्तारण के प्लांट को जमीन पर उतारा था और तब से आज तक गीले व सूखे कचड़े का मर्म उलझा हुआ सामने है। समय के साथ तारीखें बदलीं, गीला कचड़ा सूखे में बदल गया और कचड़ों का ये खेल अपने भाग्य को कोसता आज तक छटपटाहट के साथ सामने है। गीले व सूखे की छटपटाहट का दर्द समय के साथ बढ़ता गया तब हमारी नई मेयर साहिबा इस वेदना से इतना विचलित हुईं कि वो अचानक इंदौर निकल गईं।
जब लौटीं तब तक गहन मंथन का परिणाम सामने आ चुका था। कूड़ा विज्ञान की उलझी पहेली का मर्म कॉपीराइट के रूप में उनका अधिकार बन चुका था। मेयर साहिबा ने खोज निकाला आखिर तमाम प्रयासों के बावजूद लखनऊ इतना गंदा क्यों है। उन्होंने स्पष्ट किया आज तक गीला कचड़ा सूखे को सहन नहीं कर पा रहा है और सूखा गीले को।
इस महान खोज के लिए लखनऊ की यशस्वी मेयर बधाई की पात्र हैं। हजारों-हजार कर्मचारी, सैकड़ों गाड़ियों का काफिला, दर्जनों कट्टर ईमानदार कार्यदायी संस्थाएं, लाखों के डीजल की हेराफेरी करने वाले ड्राइवर जो आज तक नहीं कर पाए, हमारी मेयर साहिबा ने बस एक दौरे में लखनऊ को साफ सुथरा रखने का मंत्र खोज निकाला।
लखनऊ तो आदी हो चुका है इस तरह के तफ़रीहन मज़ाक का। जो नियमित होना चाहिए था, उस सफाई के काम का अभियान चलाने का मज़ाक वो करते हैं और हम यानी लखनऊ के बाशिंदे मज़ाक को मज़ाक समझकर खामोशी के साथ कूड़े की बदबू का आनंद पहले की तरह उठाते हुए फिर मज़ाक का पात्र बनकर खामोश हो जाते हैं। वो दावा करते हैं साफ-सुथरे शहर को देखकर मुस्कुराइए कि आप लखनऊ में हैं।
मुस्कुराहट जब हंसी की वेदना में लिपट जाती तब दिखता है गंदगी में तैरता लखनऊ, उफान मारते नालों की चरणबद्ध शृंखला, बजबजाती नालियों की दास्तां, आवारा जानवरों का बसेरा और उनके मल मूत्र से उकेरी गई वो खूबसूरत तस्वीर जो लखनऊ की खुसूसी पहचान का आज के तारीख का सच है। इसके साथ सड़कों के मोड़ पर जर्जर कूड़े के कंटेनर, टूटे हथठेलों की कर्कश आवाज, उन्हें घसीटते कर्मचारियों के कांपते हाथ, यही लखनऊ की बिखरी नियामत है जिसके बीच लखनऊ का आम बाशिंदा जीता है।
दावों के पैबंद में छिपी झूठ की तस्वीर तो बिखरी पड़ी है फिर भी हैदराबाद की मेयर व पार्षदों ने कहा लखनऊ की सफाई व्यवस्था बेहतरीन है। पता नही ये गंभीरता को ओढ़े शब्द थे या अतिथि भी मज़ाक करने से बाज नहीं आए। गुजारिश है हैदराबादी दोस्तों, अपने घर पहुंच कर अखबारी बयानों में लखनऊ की तारीफ करना वरना टीए-डीए पर आफत तो आ ही जाएगी वहीं ताकीद है कि हैदराबाद को लखनऊ की तर्ज पर संवारने की कोशिश भी मत करना वरना हैदराबादी कयामत बरपा देंगे क्योंकि उन्हें साफ-सफाई में जो रहने की आदत है।
नगर आयुक्त महोदय आप भी गज़ब की हिकमत के नायक हैं। कहां-कहां घुमा लाए हैदराबाद की मेयर व पार्षदों को, जगह का खुलासा कर दें, ताकि एक बार चाक-चौबन्द लखनऊ के उन इलाकों को निहारने की हसरत पूरी हो जाए जो अभी तक आम बाशिंदों की पहुंच से दूर हैं। आयुक्त महोदय आप प्रशासनिक अफसर हैं, निश्चित तौर पर ज्ञान के पाठशाला के अव्वल विद्यार्थी रहे होंगे तभी तो हैदराबाद डेलीगेशन को ऐसे घेरे में रखा जैसे क्लास रूम में बच्चों को टीचर रखता है। आपके हुनर के चलते लखनऊ बच गया।
घेराबंदी तोड़कर एक भी हैदराबादी पार्षद पुराने लखनऊ की गलियों, अमीनाबाद की उफनाती नालियों और कूड़े से ढकी पगडंडियों को देख लेता तो आपकी सारी कवायद बेमानी हो जाती। सड़कों पर आवारा कुत्तों और जानवरों के रेवड़, उनके मल-मूत्र से सनी सड़कें, मयखानों में तब्दील पार्क, दिन में ही सड़कों और फ्लाईओवरों पर जलती लाइटें, कुकरैल पुल के पास निगम वर्कशॉप ठीक सामने 60-70 फिट ऊंचे कूड़े के पहाड़ का अद्भुत नजारा, लखनऊ की खूबसूरती का बदनुमा दाग, गरचे हैदराबादी देख लेते तो कसम ऊपर वाले की गज़ब हो जाता।
सफाई अभियान के दावे दरक जाते।आयुक्त महोदय आपने बचा लिया लखनऊ को। आपके अनथक प्रयास के चलते लखनऊ मुस्कराना भी चाहता है, आप शहर के माई-बाप हैं, बस उस जगह का खुलासा कर दे जहां हैदराबादी डेलीगेशन को ले जाकर आपने सब्जबाग दिखाए थे। ताकि लखनऊ के बाशिंदे वहां जाकर कम से कम एक बार मुस्कराने की रस्म तो पूरी कर लेते।
आप कह रहे मुस्कराइये ये नामुराद लखनऊ वाले मुस्कराना तो छोड़िए मुस्की तक नहीं मार रहे। चलिए विषय को थोड़ा बदलते हैं, अखबारों की कतरनों पर निगाह डालें तो पता चला कि शहर में सफाई अभियान चल रहा है, कुछ मंत्री भी झाड़ू के साथ फोटो खिंचवाते दिखे थे, अच्छा लगा, मनमोहक दृश्य था। इस महान अभियान में लखनऊ शहर के वो विधायक नहीं दिखे जिनको बहुत ही अरमान के साथ लखनऊ ने चुनकर साधारण कुर्ता पैजामे में समाए शरीर को माननीय बना दिया था।
माना माननीय हैं, बड़े-बड़े कामों में व्यस्त होकर बड़ी-बड़ी योजनायें बना रहे होंगे। आयुक्त महोदय गुजारिश है अगला कदम ध्यान से उठाईयेगा क्योंकि अब दो अलग-अलग किस्म के माननीयों को संभालने की ज़िम्मेदारी लखनऊ पर आन पड़ी है। एक तो वो पहले वाले हैं, उनको संभालने की कला में आप और आपका विभाग पहले से ही पारंगत है। ये माननीय भी लोकतन्त्र के स्तम्भ कहे जाते हैं, पॉश इलाके में रहते हैं सड़कों पर गर्द भी दिख जाए तो एकाध नगर निगम कर्मचारी निबटा दिए जाते हैं।
दूसरे किस्म के माननीय स्वतः संज्ञान लेने वाली बिरादरी से आते हैं, मर्म का ज्ञान, हकीकत की पहचान और तजुर्बा आप सबको पहले से था, इसलिए उनके आदेशों व निर्देशों को गंभीरता से ग्रहण कर गंभीरता के साथ फाइलों में कैद नौकरी के आनंद का सुख भोगते रहते हैं। बस ध्यान रहे हर सुबह झाड़ू लगने की आवाज उनके बेडरूम तक जरूर सुनाई पड़े। मॉर्निंग वॉक का रोड मैप बनाकर उसे विशेष गलियारें में तब्दील कर दें, तो समझ लें लखनऊ साफ, नगर निगम पाक-साफ, बाकी शहर दोज़ख लगे या मुर्दा घर, क्या फर्क पड़ता है।