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गड्ढों की फितरत और उनकी मासूमियत

Sukirt
Last updated: सितम्बर 29, 2024 11:19 पूर्वाह्न
By : Sukirt Published on : 8 महीना पहले
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तर्ज, तंज, तर्क और तुक तो जस का तस है, बस चेहरों का फर्क नजार आता हैं। समझना होगा सत्ता के गलीचों को रौंदने की परम्परा तो पुरानी हैं। सियासत की मौजूदा हरारत बताती हैं, कुछ करने की सोच कुछ नेताओं के बाल-बोध का दर्शन करती हुए सामने हैं। समझलें गलती उसी से होती हैं, जो मेहनत करता है, निकम्मों की जिंदगी दूसरे की गलती निकालनें में ही निकल जाती। शब्दों को पकड़ने की जहमत मत उठाए वरना कुछ दिल्ली व लखनऊ वाले नेता बुरा मान जाएंगे। मंत्री है, सरकार उनके साथ चलती हैं।

पंगे लेने में माहिर, बयानबाजी का खिताब उनके पास। वह फरमाते हैं, ग्राम्य विकास विभाग में 2500 खाली पदों को जल्दी भरें। अब कौन समझाए, मंत्री आप, फैसला आपका, फिर पद जल्दी भरने की प्रार्थना किससें कर हैं। जो आदेश विभाग में अफसरों को सीधा देना चाहिए। वह आदेश बजरिए अखबार को देना अदृश्य ताकत से खाली पदों को भरना। ये मंत्रियों महोदय सिफ़त और कलाकारी की एक विशेष प्रदर्शन कहा जा सकता हैं।

ये महोदय कभी गड्ढे भरने वाले विभाग की शोभा बढ़ा रहें थे। बड़ी शातिराना अंदाज में गड्ढों की भराई हुई, मिट्टी से लिपाट हुए, कहीं पेच लगा, कहीं झाडु लगी और गड्ढे दफन हों गए। आज फिर वहीं गड्ढे नामुराद फिर परेशानी किए हुए। समय के साथ गड्ढों का साइज बढ़ा, आए दिन सड़कों के बीच कुएं सरीखी गहराइयों के दर्शन होने लगें तो मुखिया ने फरमान 10 अक्टूबर तक गड्ढे भर दिए जाए। ये शर्ते क्या हैं, इसकी जानकारी नहीं लेकिन सिर्फ शब्द को पकड़िए तो ये कहीं नहीं, कहां गया है। गड्ढे कहा से भरें जाए।

कंक्रीट, कोलतार फिर गिट्टी, सिर्फ मिट्टी या बालु या सिर्फ राख से। बस यहीं हमारें कलाकार अफसर अभियन्ताओं और ठेकेदारों का राहत का आमंत्रण देती हुयी। अतिरिक्त कमाई का दरवाजा खोल देती। गड्ढों की अपनी फितरत है, इसमें कई विभागों की कार्यशैली की दास्तां छिपी रहती हैं। अच्छा बजट, कम समय, मतलब भुगतान भी खटाखट। उधर बदलतें मौसम के चलते एक और विभाग सहालग का आनंद उठाते हुए सामने है।

मतलब डेंगू एक बार फिर बाजे-गाजे के साथ लखनऊ में प्रवेश कर चुका हैं। सब कुछ ठीक चल रहा था। मेडिकल अफसर मरीजों के आंकड़ों का ज्ञान बांट रहें थे, बेड की गिनती बता रहें, मुकम्म व्यवस्था का शेषनामचां पेश करते हुए, वाह-वाही के दर्पण में अपना चेहरा देख कर मस्त थे। उधर विभिन्न मुद्राओं में दिखने वाले सेहत मंत्री भी अस्पतालों की व्यवस्था, संक्रामण रोगों के प्रसार पर खामोशी के साथ गोष्ठी और प्रेस सम्मेलन के साथ-साथ उद्घाटनों का रिकार्ड बनाने में जुटे थे।

इसी बीच डेंगू से एक महिला का मौत ने एक ढर्रे पर चल रही सरकारी दावों की धज्जियां उड़ा दी। सरकारी परम्परा थी जबतक एकाध मरीज निबटें न तबतक उद्घाटनों में व्यस्त रहों, विज्ञप्ति जारी करते रहो। मौत के बाद रूटीन बदलना पड़ता हैं, मंत्री कहेगा, हमने निबटने का आदेश दिया, नगर निगम बताएगा, गहन छिरकाव फॉगिंग हो रही हैं, मेडिकल अफसर कहेगा, बेड बढ़ा दी हैं।

घर-घर जांच भी कराने का प्रयास होगा। इतिहास अपने को दोहराता है यह सत्य हैं। पिछले साल के अखबार पलटिए सब कुछ जस का तस पढ़ने को मिलेगा। शातिर डेंगू तो डंक हर साल मार कर अगले साल के इंतजार में चला जाता हैं। लेकिन इस बार डेंगू का बाप मंकीपॉक्स भी डेंगू के साथ भाईचारा निभाने के लिए साथ आ धमका। दोनों भाई-भाई हैं, कातिल हसरतों में सहभागी हैं, जरा सी लापरवाही अनंत यात्रा का टिकट थमा देती हैं।

साफ-सफाई दोनों को पसंद है लेकिन दोनों के लिए अभी तक किसी ठोस दवा समनें नहीं आ सकी है। मतलब कुछ भगवान, कुछ खुद के प्रयास और बहुत कुछ शहर की गंदगी को साफ करने वाले विभाग के भरोसे। एम पॉक्स का खतरा दो साल पहले ही खौफ का सबब बढ़ा चुका है, जब दो बच्चियों का सैंपल जांच के लिए सहारनपुर लैब में भेजा गया था।

फिलहाल लखनऊ में एक मरीज मिलने के साथ हड़कम्प हैं। अब देखना है, सरकारी तर्ज पर तर्को का कौन सा नया शिगूफ़ा सामने आता है लेकिन इसके इतर तंग से लबरेज कुछ सरकारी तुकबंदी का ब्यौरा जरूर परेशान कर दिया गया है। लखनऊ नगर निगम ने निर्देश दिया आप सुधरें हमें क्या करना हैं, इसका कोई संदेश उनके निर्देश में नजर नहीं आता।

निर्देश का सबसे मजाकिया निर्देश में कहां गया है। एंटी लार्वा छिरकाव में पार्षदों का घर अदृश्य कवर किया जाए, सभी प्रमुख स्थानों पर जागरूकता स्टीकर्स लगाए और डिजिटल डायरी दर्ज हों, फीडबैक लें। स्कूल में भ्रमण करें, सफाई इंस्पेक्टर व जनरल सेनटरी अधिकारी। कोचिंग व स्कूलों का निरीक्षण करें ये आदेश है या निर्देश आप जाने लेकिन संचार रोगों के रोकथाम के लिए आप यानी नगर निगम क्या करा रहा है।

इसका जिक्र तलाशते रह जाओगे, मिलेगा कहीं नहीं। वह जुर्माना लगाएंगे, जुर्माना कितनों पर लगाना हैं, इसका कोटा भी निर्धारित है। कितने स्टीकर सामने हैं इसकी संख्या भी बताई गई हैं। मतलब अभियान संदर्भ में नगर निगम की फाइलों को चाक-चौबंद रखने की पूरी हिदायत। इस हिदायत को आदेश के रूप में लेते है या निर्देश के रूप में आपकी परेशानी भी और ज़िम्मेदारी भी।

नाटकीय अंदाज में हम लड़ेंगे संचारी रोगों से। लेकिन एंटी लार्वा और फॉगिंग पूरे शहर में होगी या हो रही हैं इसका तस्करा कहीं नहीं। हकीकत और सरकारी दावों के बीच खाई का सच पूरे लखनऊ में बिखरा हैं नजर आ जाएगा। युद्धस्टर सरकारी शब्दावली हैं। सफाई अभियान जारी हैं। ये सरकारी कार्यशैली की फरेबी दास्तां की तीड़कमी सच्चाई हैं। फॉगिंग का पता नहीं एंटी लार्वा की मुहिम का।

अभियान के बावजूद सड़कों और नालियों का जमा पानी खतरे का संकेत हैं। भले फाइलों में सफाई का दावा हैं, ठेकेदार के पेमेंट का ब्यौरा जरुर दर्ज दिख जाएगा। मजाक-मजाक में वह मजाक कर गए आवाज उठाने को हर कोने को एंटी लार्वा व फॉगिंग के धुएं से तर करने का हिसाब-किताब है लेकिन गंदगी में तैरते शहर को उबारने व बचाने का न दावा है और न ही आदेश व निर्देश।

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