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धुआं-धुआं सा क्यों, यह शहर बुझा-बुझा सा क्यों

Sukirt
Last updated: अक्टूबर 19, 2024 11:09 पूर्वाह्न
By : Sukirt Published on : 9 महीना पहले
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Highlights
  • गलाजत पर तैरता शहर-ए-लखनऊ

अगर तुम्हारी मौजूदगी में जले थे बागबां तो मैं कैसे कह दूं इसमें तेरा इशारा न था”

अगर तुम्हारी मौजूदगी में जले थे बागबां तो मैं कैसे कह दूं इसमें तेरा इशारा न था। ये दास्तां नहीं बिखरी हकीकत का वो सच है जो लखनऊ की पहचान को गलाजत के उस मुकाम पर पहुंचा चुका है जिसके आईने में कहा जा सकता है कि ये शहर नहीं लेकिन आम बोलचाल की ज़बान में ये शहर-ए-लखनऊ है।

गज़ब का तिलस्म है वो कूड़े से कमाई कर लेते हैं। हर दिन तकरीबन 16 सौ टन कूड़ा लखनऊ के गली कूचों को अपने दामन में समेट लेता है तो उधर ई-टेंडरिंग के जरिए ठेका देने का खेल इस कदर परवान चढ़ा, न कूड़ा उठा, न कर्मचारी दिखे, ये बात दीगर है कि कूड़ा उठाने के नाम पर 15 लाख का डीज़ल कहां खप गया न नगर आयुक्त को पता है और न ही शहर की चाभी थामे महापौर को।

ये बांधी है वरना सफाई के नाम पर हज़ार करोड़ का ई-टेंडरिंग का खेल हो जाता है। ये वो नगर निगम है जहां 24 घंटे बिजली आपूर्ति के बावजूद ज़ोनल कार्यालयों के लिए जनरेटर के नाम पर हर महीने 50 लाख का डीजल कर्मचारी पी जाते हैं। फिर भी न आयुक्त की ज़ुबान खुलती, न ही पार्षदों का आक्रोश नज़र आता है। ऐसे में कहा जा सकता है…

फाइलों में गुम है सफाई का निर्देश

सर्वेक्षण का आदेश और स्मार्ट सिटी का झकझोरने वाला संदेश। इनका दावा है कि घर-घर से कूड़ा उठ रहा है और ठेकेदारों पर सैकड़ों बार जुर्माना ठोंका जा चुका है। सवाल सीधा सा है क्यों और किसके इशारे पर 34 वार्ड दागदार ठेकेदारों के हवाले कर दिये गए। मसला धीरे-धीरे लखनऊ की आबोहवा को गलाजत के इस मुकाम पर पहुंचाने का है जिसको देखकर कहा जा सके कि अब लखनऊ खुद अपनी दुर्दशा पर मुस्कुरा रहा।

समय के साथ कमाई के दुर्लभ साधनों की इबारत लिखी गई। इसमें पार्षद, ठेकेदार और अफसरानों की जो कहानी दर्ज है उसमें कमीशन का खेल है, संविदा कर्मियों के नाम पर फर्जीवाड़ा और कागजों पर हंसता मुस्कुराता लखनऊ है।

नगर विकास का जिम्मा संभाले मंत्री खामोश है।भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस का मसला खुद भ्रष्टाचार का शिकार है। मसला किसी पर आरोप लगाने का नहीं, सवाल भाजपा के 56 पार्षदों का… जिन्होंने लम्बी खामोशी के बाद मोर्चा अपनी ही व्यवस्था के खिलाफ खोला तो सही। वो कहते, अफसर नहीं सुनते, नगर आयुक्त कहते कि हम हर शिकायत को गंभीरता से लेते हुये समाधान खोजने की कोशिश करते हैं।

ये समझ से परे है कि पूरा नगर निगम का शीर्ष नेतृत्व शहर की दुर्दशा से बेखबर सिर्फ मीटिंग और विभिन्न समितियों का गठन कर अपना दामन बेदाग पेश करने में जुटा रहता है। शिकायत मुख्यमंत्री तक है कि भाजपा पार्षदों में बगावत की बू आ रही है लेकिन शहर को संवारने की खुशबू दूर-दूर तक महसूस नहीं की जा रही।

नगर आयुक्त महोदय जवाब दें

  • – टेंडर का मूल्यांकन 19 अधिकारियों की विभागीय समित द्वारा किया गया लेकिन फिर भी सफाई के सात बार टेंडर कराए गए और बड़ी कंपनियो के टेंडरों को रोक दिया गया।

  • – अचानक टेंडर निरस्त किए जाते हैं फिर पता नहीं किसके इशारे पर लखनऊ के एक ही ठेकेदार को 34 वार्डों का ठेका दे दिया जाता है जबकि पूर्व मेयर सन्युक्ता भाटिया ने दर्जनों बार उस पर जुर्माना लगाया था।

  • – आरोप है कि शहर की सफाई के लिए लगभग 10 हज़ार संविदा कर्मियों के नाम फाइलों में दर्ज हैं जबकि हकीकत इससे अलग है। पार्षदों सम्बन्धित अफसरों और एजेंसियों की मिलीभगत के चलते लगभग आधे कर्मचारी ही सफाई में जुटे नज़र आते हैं।

  • – संविदा के नाम पर खुलेआम लूट का खेल जारी है। सैकड़ों कर्मचारी चार से छह हज़ार महीने पर काम करते हैं और बाकी रकम की खुलेआम बंदरबाट हो जाती है।

  • – आज भी तमाम मुहल्लों में बांग्लादेशी 60-40 के अनुपात से कूड़ा उठा रहे हैं जिसमें 60 रुपए बांग्लादेशी को मिलते हैं और 40 रुपए किसकी जेब में जाते हैं यह अभी तक रहस्य बना हुआ है…

  • – उम्मीद है कि नगर आयुक्त आरोपों की बौछार, जांच और उसके परिणामों की निष्पक्षता को बरकरार रखते हुए साबित करेंगे कि नगर निगम की हर शाख पर उल्लू नहीं ईमानदार भी बैठे हैं…

TAGGED:lucknowpollutionUB Specialकूड़ा
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