रावण फूंकने के बाद ताजातरीन मज़ाक फिर सामने है। इनकी अदा है मज़ाक करने की। बैठे ठालें जब फुर्सत मिली तो कुछ नहीं, तो मज़ाक ही कर डाला। मज़ाक वह किया है जिसमें फायदा ज्यादा, नुकसान कम होता है। सरकारी हुक्कामों को मज़ाक की ये अदाकारी ज्यादा मुफीद लगती है। इसी कड़ी में शुद्ध खालिस प्रस्तुति के साथ सामने है नगर विकास विभाग। सरकार का ये अकेला मज़ाकियां विभाग हैं, जिसके हर कारनामें मज़ाक की गंध से सराबोर रहते है।
अभी गड्ढे भरने का मज़ाक चल ही रहा था कि मंत्री जी की मौजूदगी में नगर विकास विभाग स्मार्ट सड़कों का एक और मज़ाक पेशकर वाहवाही लूटने का प्रयास कर डाला। वह भी उस लखनऊ में जो विगत दस साल से स्मार्ट सिटी का बैनर थामे दर दर भटक रहा है।
मज़ाक का ये ताजातरीन स्तर कुछ ऊंचा लगता है। देखिए गड्ढे में तब्दील सड़कों के बीच सात नयी स्मार्ट सड़कें बनेगी। उस शहर में जहां सड़कें गंदगी और उखड़ती परतों को समेटे पहले से ही मज़ाक बनकर रह गई। हर सड़क सम्पूर्णता के आईने में अपने को सड़क कहलाने में शर्म महसूस करती है। लेकिन योजना, बजट, ठेका, निगरानी, भुगतान की रवायत जब वजूद में हो तो ऐसी घोषणा भले आपको मज़ाक लगे लेकिन अफसर से पूछिए, अभियंता को टटोलिए, ठेकेदार से पूछिए, भुगतान वाले बाबू की खिली बाछों को समझने का हुनर सीखिए, सब कुछ साफ हो जाएगा।
मज़ाक आप के लिए हो सकता है लेकिन उनके लिए नहीं जो एक महीने के अंदर नई सड़कें धंसने, पर्त उखड़ने, घटिया निर्माण सामग्री लगाने की कला को बखूबी जमीन पर उतार देते है और मिल बांटकर संबंधों की जमीन और पुख्ता करते हुए नई योजनाओं पर निगाह टिका देते हैं।
माना लखनऊ स्मार्ट न बन पाया, लेकिन सात नई सड़कों को स्मार्ट वही लोग बना कर दिखा देंगे जिन्होंने पूरे लखनऊ की तस्वीर को बदनुमा बनाने में अपने को समर्पित कर दिया। लखनऊ के महानगर में भूमि पूजन हो चुका है। मंत्री महोदय सशरीर मौजूद, और पूर्वी विधान सभा क्षेत्र के वही विधायक भी नजर आएं जिन्होंने जीतने के बाद शक्ल तक नहीं दिखायी जब की खुद उनका इलाका अतिक्रमण, गंदगी और उजड़ी बिखरी सड़कों का गवाह बन कर सामने हैं।
खैर मजाक में सब चलता है, सड़कें बनेगी स्मार्ट, हरियाली होंगी, बैठने के लिए बेंच होंगी, भूमिगत स्ट्रीट लाईटों के तार होंगे, सुनकर अच्छा लगा खैर मज़ाक देखिए जहां घनी आबादी है, वहां सड़कें गायब हैं, हरियाली नदारत है, उन्हें छोड़कर वहां स्मार्ट सड़कें बनेंगी जहां पहले से सड़कें बेहतर हैं, खुली जगह व हरियाली है।
खैर मज़ाक उनकी अदा है और मज़ाक का पात्र बनना जनता की नियति है लेकिन अफसरान ये बताएं 186 करोड़ खर्च करने के बाद इनके रखरखाव की क्या योजना है। निर्माण हो जाता है फिर लावारिस छोड़ देना सरकारी कार्यशैली है क्या इस पर भूमि पुजन में शामिल महान शख्सियतों ने मौजूद नगर निगम मेयर व आयुक्त से पूछने की हिमाकत की।
हो सकता है मज़ाक में न पूछने की शर्त भी शामिल हो। नगर आयुक्त महोदय आप से सवाल है मजाक नहीं, सड़कों पर झाडु तो लगवा नहीं पाते फिर इन सात स्मार्ट सड़कों पर आपकी क्या कार्य योजना है, कृपया खुलासा करते चले तो बेहतर होगा।
मेयर साहिबा तो सियासी कुनबे की तरफ से निर्धारित कोटे की पहचान है। सवाल पूछा गया तो राजनैतिक गंध से लबरेज जवाब भी आ जाएगा, लेकिन इतना तय है कि आप सब ने मिलकर शहर का मज़ाक उड़ाया उसकी बानगी मिलना मुश्किल है, फिर भी देखना है स्मार्ट का तमगा लगाएं जैसे लखनऊ बिलबिला रहा है कहीं उसी तर्ज पत्थर पर दर्ज मंत्री विधायक के नाम के अलावा सात सड़कें भी लावारिस तमगे के साथ स्मार्ट कहलाती न नज़र आएं।