कोलकाता प्रकरण -
दहकती इच्छाओं की दरकती दास्तां
सड़कों पर जलजला, बयानों का सिलसिला और आदेशों का इम्तिहां
सियासत के दियारे इतने संज्ञाहीन क्यों...
एक बेटी निहार रही है, कफिन के अंदर ख़ामोश
ी के चादर में लिपटी जवाव मांग रही है
समय के साथ राख बनकर किसी कोलाहल करती नदी में बिखेर दी जाऊँगी।
प्रिन्सिपल को बर्खास्त करने के बजाय उसका तबादला किया गया |
मेरे इस शरीर की अंतिम यात्रा है। जीना तो चाहती थी दूसरों के जीवन के लिए...।