चंद सवालों के बीच लोकतन्त्र की खुली बयार में दहकते-बहकते बयानों पर निगाह डालें तो त्रियाचरित्रीय किरदारों को सलाम तो बनता है। एक शब्द राम, जिसे सियासत की पगडंडियों में भुनाने, बहकाने और दहकाने की पुरजोर कोशिशें बिकी गयी लेकिन राम शब्द के अर्थ और उसमे छिपे मंत्र को समझने की किसी स्तर पर नजर न आई। सियासत के गलियारों से इतर राम शब्द को विख्यापित करने का मकसद नहीं, कोशिश शब्द के मर्म को आत्मसात करने का है।
गौर करें जीवन का कौन सा ऐसा पहलू है जहां राम प्रेरणा न देते हों
भारत की आस्था में राम, आदर्शों में राम, दिव्यता में राम, दर्शन में राम… जीवन यात्रा का सच हैं राम, ज्ञान का बिम्ब हैं राम, कालजयी यात्रा का सामंजस्य हैं राम। अयोध्या की चाहरदीवारी के दायरे में ही राम को मत तलाशो। राम मध्य युग में तुलसी, कबीर और नानक के जरिये हमारे बीच हैं।
आज़ादी के बाद गांधी के भजनो में राम अहिंसा के रूप में थे। भगवान बुद्ध भी राम से जुड़े थे। समझना होगा सदियों से अयोध्या नगरी राम के साथ जन-जन की आस्था का केंद्र रही।
जब देश सियासी पतन की पगडंडियों पर कदम-दर-कदम, कदमताल कर रहा था। तब सोशल इंजीनियरिंग जैसा शब्द सामने आया और इसी बीच बिखरी सैद्धांतिक परिकल्पनाओं के बीच राम शब्द जुड़ा जो धर्म और आस्था की बानगी से इतर राजनीतिक लाभ और नुकसान का सच बन गया।
मामला यही तक सीमित नहीं था, सामाजिक सरोकारों से इतर भारत के वर्तमान वैभवों का आकलन करते हैं की समझना होगा आदिग्रंथ, अथर्वेद में अयोध्या को राम का नगरी कहा गया है। विश्व के सबसे पुराने ग्रंथो में चारों वेदों का जिक्र हैं।
उसमें राम और अयोध्या का जिक्र इस बात का प्रमाण हैं की राम हमारी जीवन शैली का ऊर्जात्व तत्व हैं। इसी लिए कहा जाता है विकारों से मुक्त राम मर्यादा पुरुषोतम है।
राम धर्म विवेक और आदर्श के साथ व नैतिकता के वाहक ही नहीं क्रोध व पाप से अलग समदर्शी भी है।
सवाल उठता हैं क्या हैं राम
राम धर्म हैं, संस्कार है, राग हैं, रंग हैं और मानवता के आधार स्तंभ हैं।