नौकरशाहों और सरकार चलाने वाले खद्दर नवीसों के बीच संबंधो को समझना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। इसे विरादाना संबंधों के दायरे में भी रखा जा सकता लेकिन याराना की गुंजाइश से इनकार भी नहीं किया जा सकता। फर्क बस लम्बी उम्र का है।
एक रिटायरमेंट तक धरती पकड़ का पर्याय है तो दूसरी अल्पआयु वाला हर पांचवे साल जीवन मरण के सवाल में जूझता हुआ दिखता है। लेकिन एक शब्द फितरत पर दोनों के शब्दकोष में उपलब्ध है। घोटालों, भ्रष्टाचार और कोताही मोहताज नहीं रहें।
कभी भी सरकारी सेवा में पहचान के भूमिका में थोड़ी सी गुंजाइश रहती है। जिसे आप फर्क कह सकते है। आप कुकर्म करते रहिए, बस सामने वाला बड़े याराना अंदाज व सख्त लहजे में फरमाएगा, भ्रष्टाचार और घोटाला बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। बस यों समझिए वह बर्दाश्त नहीं करते और सरकार चलने की प्रचलित सिद्धांत बनकर सामने है। अखबारों के पन्ने नौकरशाहों की अदाकारी व खद्दर नवीसों की क्रांतिकारी घोषणाओं से रंगे नजर आएंगे।
इसी संदर्भ में एक रोचक किस्सा लखनऊ विकास प्राधिकरण का हैं। प्रायः प्राधिकरण अपनी हरकतों और कार्यशैली के चलते नए-नए करतबों के साथ अपनी पहचान पुख्ता करने कहीं किसी से पीछे नहीं लेकिन एक खबर ने ये बता दिया की गफलत, फिर सफाई, फिर कार्रवाई आश्वासन का भ्रम जाल किस कदर अपनी छवि को बेदाग करने में जुटा है।
खबर एक प्लॉट के नीलामी की है। एलडीए के जांबाजों ने एक विज्ञापन दिया, प्लॉट की बिक्री का रेट भी जगह के हिसाब से आया था। दस सितम्बर को जारी विज्ञापन के हवाले से प्लॉट का रेट भी घोषित कर दिया। इच्छुक लोग प्लॉट देखने पहुंचें तो पता चला वहां तो पहले से ही तीन मंज़िला इमारत एलडीए का मुंह चिढ़ाते सामने खड़ी है। किसी नाट्यशाला प्रहसन से लबरेज नाटक का ये हिस्सा नहीं बल्कि अफसरशाही का एक नगमा था जो बिना पढे, देखे जनता के सामने प्रस्तुति कर दिया गया।
बेहतरीन व्यवस्था के एक नायक है। है, एक्सईन मनोज सागर साहब, गज़ब की हिकमत के बादशाह है। फरमाते हैं प्लॉट पर अवैध कब्जा था। जिसकी रिपोर्ट गोमती नगर थाने वर्ष 2023 ही दर्ज करा दी गई थी। रिपोर्ट दर्ज भी आपके किसी हुनरमंद ने कराई होंगी, ये है कार्यशैली का बेबाक अंदाज देखिए उस प्लॉट की बिक्री का विज्ञापन दे डाला जो प्लॉट था ही नहीं।
महोदय एक साथ पहले अवैध कब्जे की रिपोर्ट दर्ज और आप 2024 तक उसे खाली करने की हिम्मत तक नहीं कर पाए। ये कोताही नहीं, लापरवाही और सरकारी तर्ज पर काम करने की बेहतरीन मिसाल है, अब क्या होगा, जांच कमेटी बनेगी, रिपोर्ट देने की तारीख तय होगी और जिम्मेदार बचकर फिर किसी नए मुहिम में एलडीए पर कालिख पोतने की स्क्रिप्ट लिखने में जुट जाएंगे।
शायद कुछ ऐसे रोचक किस्सों के लिए ही एलडीए जैसे महारथी की स्थापना की गई होगी। प्रशासन स्तर पर खामोशी हैं, संबंधित विभाग गाफिस है। सरकारी अफ़सरानों का बेढब अंदाज उनकी अदाकारी का हिस्सा है। आनंद उठाइये लेकिन उंगली मत उठाएं क्योंकि वह भी सरकार है, मंत्री विधायक तों बस हरकारे है। जिनका काम बयान और मसखरी के साथ, दावों की अनसुलझी कहानियों का ब्यौरा देना मांग होता है।
एक और रोचक किस्सा आपके हास्य रस का भरपूर आनंद देगा। पाक साफ कला के अद्भुत संगम से उपजा विभाग का नाम है पुलिस। चलिए आनंद की गहराईयों में घुस कर थानेदार, आरटीओ और दलालों की सफागोई की उन चौपाइयों पर निगाह डालते है जो लखनऊ के निशातगंज चौराहें पर मंजित होता हैं।
अवैध रिक्शों का रेवड़, अतिक्रमण की बेहतरीन मिसाल वाला ये चौराहा महानगर थाने और निशातगंज चौकी के बीच कसमसाता और कमाई के द्वार भी खोलता हुआ बेखौफी के साथ सामने हैं। ई-रिक्शा से वसूली, दलाल सामने, बगल में पुलिस पिकेट। किससे कितनी वसूली, किसको कितना जाता है, ये सब रिकार्ड हो रहा है लेकिन RTO प्रशासन बड़ी डिग्री वाले हाकिम संजय तिवारी। आप फरमाते है, जिसे पैसा देते है उसका नाम तो बताइये। नाम हम देंगे तो आप क्या करेंगे महोदय।
ये आपकी ड्यूटी का हिस्सा है, दलाल मुक्त RTO की व्यवस्था। पंडित जी का दावा है कि रोज अभियान चलते है। हुजूर कहां चलते है, इसका खुलासा आप कर दे तो बेहतर होगा। ये विकृतियों का सरकारी सच और विकृतियों को प्रश्रय देने वाली सरकार के संबंधित मंत्री की अयोग्यता व अक्षमता इससे इनकार नहीं किया जा सकता।
जिनका विभाग खुद दलालों और वसूली का सच है। जिसका मुखिया अपने विभाग की कालिख साफ नहीं कर सकता। वह सड़क पर बिखरे नासूर का इलाज कैसे कर सकता इतना साफ है। एक दिन के अखबार का दूसरा रोचक हिस्सा महानगर के थानेदार साहब का है।
बढ़िया बुलेरों पर गश्त पर निकलते है। पर उन्हें सड़कों पर काबिज अवैध रिक्शे, ठेले दिखते है और न ही घूमते फिरते दलाल। इंस्पेक्टर महानगर अखिलेश मिश्रा, खुद पुलिस को ईमानदार का सर्टिफिकेट दे डालते है। वसूली न बाबा न इतनी ईमानदार खाकी वर्दी आप ढूंढते रह जाएंगे लेकिन महानगर थाने में जरूर मिल जाएंगी।
महाश्य अदब के साथ, गुंजारिश है और मंशा भी कि पुलिस ईमानदार हो। आप सब है तो साधुवाद। लेकिन घूमकर देखे चौराहों, सड़कों गली कूचों में पसरे अवैध कब्जे और वाहनों की भीड़ को बिना फीस दिए एक कदम आगे बढ़ नहीं सकते और न ही कोई खोंमचा वाला तक अपनी दुकान को टेक लगाने की जगह पर टिक सकता हैं।
इंच-इंच जमीन का रेट तय है, आटो, ई-रिक्शों, विक्रम, चारपहियां वहां और बसों की वसूली उनकी क्षमता के हिसाब से होती हैं। मजाल है पुलिस की शह को बिना कुछ संभव हो सकें। इंस्पेक्टर महोदय आप के थाने से मात्र 500 कदम आगे निशातगंज शहर का व्यस्ततम चौराहा हैं। निशातगंज चौकी, चौराहे पर पुलिस पिकेट लेकिन किसी को नहीं पता चौराहें पर हो क्या रहा है, पता नहीं आपकी मासूमियत पर पुलिस के आलाअफसर अभी तक संज्ञान क्यों नहीं ले पाए।
ईमानदार को, आज की तारीख में सबसे कठिन आदत कहें या काम है। शायद इसी का नतीजा सिर्फ निशातगंज ही नहीं चारबाग से लेकर पत्रकारपुरम चौराहें तक लोग भुगत रहें हैं। ट्राफिक के आलाहाकिम हजरतगंज चौराहें पर जरूर दिख जाएंगे क्यों कि यहां से सरकार गुजरती है। पुलिस के हाकिम-हुक्काम गुजरते हैं। बाकी सब न हाकिम है न हुक्काम। इसी प्रहसन की तीसरी कड़ी है एडीसीपी सेंट्रल मनीष सिंह।
आप फरमाते है, कोई अवैध स्टैंड चला रहा है, तो जांच के साथ तथ्यों के आधार पर कार्रवाई होगी। वाह कप्तान साहब वाह भरे बाज्म में दलालों और अवैध स्टैंड की राग पचीसी जारी है और हमारे हुक्मरान के कानों तक ये पहुंच ही नहीं रही फिर वहीं मासूमियत देखकर कौन न कुर्बान हो जाए।
आए दिन अखबारों के पन्ने दलालों की कारिस्तानी, अवैध स्टैंड के मुस्टंडों से भरे रहते है लेकिन साहब शायद अखबार बांचने को बचकाना हरकत समझते है। हुजूर आप शहर की कसमसाती ट्राफिक व्यवस्था के माई-बाप हो, कभी खबर के आधार जांच की हिम्मत बटोरे। सब कुछ खुली सड़क पर हो रहा है, खुला कारोबार।
आपको नहीं दिखता मतलब आप इस सरोकार से मुक्त है तो दलाली कहां और किसको जाती है, इसकी ही जांच कराले वरना गेहूं के साथ घुन भी पिसता है फिर घुन का साइज कितना ही बड़ा क्यों न हो।