फरमान है, आम जनता के जानिब, अब शहर में पाबंदियों की बेजान व्यवस्था लागू कर दी गई। अब वो नहीं कर पाओगे जो करते रहे हो जो कि मुनादी है, लेकिन वो सब करते रहोगे जो अब तक करते रहे हो, क्योंकि मुनादी सरकारी फाइलों का सच बनकर गुम हो चुकी है और पाबंदियों की बेजान व्यवस्था जस की तस लागू है। वो कहते हैं मुनादी है कि तेजाब नहीं बिकेगा, पॉलिथीन बेचने वाले पकड़े जाएंगे, गंदगी फैलाई तो ऑनस्पॉट बेनकाब होंगे, शहर कि चाहरदीवारी तले डेयरियों पर रोक है। हम सरकार हैं आदेश जारी करना हमारा कानूनी हक है। इस हक को लागू करना सरकारी कारिंदों की ज़िम्मेदारी है।
हम यानि सरकार अपनी ज़िम्मेदारी बखूबी निभा रहे हैं, यकीन नहीं, तो घूम आए शहर-ए-लखनऊ। हर गुंचे पर हमारी अदाकारी चस्पा है। कानून तोड़ना हमारी आदत है और कानून बनाकर उसे लवारिस छोड़ना सरकारी फितरत है। सवाल मत उठाइए… किसी भी परचून की दुकान से तेजाब की बोतल खरीद लाइये। किसी बच्ची के चेहरे पर डालिए और कानूनी पचड़े के चलते बचकर निकल जाना। वो कहेंगे तेज़ाब पर रोक है इसे डालने का सवाल नहीं। बच्ची पर कोई और केमिकल फेंका गया होगा। ये सरकारी तरन्नुम का एक अहम तर्ज़ है जो खुद के बचाव के लिए किसी भी मसले पर फिट कर दिया जाता है।
बच्ची शिकार हुई सरकार सख्त हुई, आरोपी को पकड़ने का आदेश जारी हुआ, मोमबत्ती की बिक्री बढ़ी, मुफ्त इलाज का लॉलीपॉप थमाया गया और समय के साथ सब शांत हो गए। सवाल मत उठाइए, इस मुनादी के दायरे का यही सच है। तेजाब कैसे मिला, कौन बेच रहा है इसकी खबर नहीं, सुप्रीमकोर्ट की रोक जारी लेकिन मसला सरकारी है इसलिए जितना आदेश है उतने पर अमल की कोशिशें भी जारी हैं, जारी रहेंगी।
सबकी अपनी भूमिका है और अपनी ज़िम्मेदारी बक़ौल सरकारी आदेश सब मुस्तैदी से निभा रहे हैं। खामोश रहें, राजशाही बनाम लोकशाही सब चलता है इसकी बानगी तो हर तरफ बिखरी पड़ी है। पॉलिथीन भी मज़ाक उड़ाते सामने, हाईकोर्ट का आदेश लेकिन हर दुकान पर आसानी से पॉलिथीन के दर्शन का लाभ उठा सकते हैं। नालियां पटी हैं, जानवर कचड़े के साथ पॉलिथीन निगल रहे हैं।
लेकिन कोटा पूरा करने लिए छापों और पॉलिथीन जब्ती की कवायद फाइलों में दर्ज कर सरकारी बाबू जहां सरकारी रस्म पूरी कर रहे हैं। विज्ञप्ति जारी कर अपनी पीठ थपथपाने में व्यस्त हैं। छापा पड़ता है दुकानों, ठेलों और गुमटियों पर लेकिन वो तमाम कारखाने महफ़ूज हैं जो हाईकोर्ट और सरकारी आदेशों की खुलेआम धज्जियां उड़ा रहे हैं। रियाया अपने में मस्त शहर त्रस्त हैं। किसी को क्या मतलब नुकसान और कल होने वाले भयावह सच से।
तीसरी तस्वीर
सख्त आदेश या यूं कहें मुनादी के साये में पनपते खटालों की अजब गज़ब दास्तां बिखरी तो पड़ी है हाथ लगाने का जोखिम कोई उठाना नहीं चाहता शहर की तस्वीर आईने तरह साफ है। हाईकोर्ट का आदेश और सरकरी फरमान बदस्तूर जारी है। बेसाख्ता कहा जा सकता है।
तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है
मगर ये आंकड़े झूठे हैं, ये दावा किताबी है।
हम और आप रियाया है विश्वास करना पड़ेगा क्योंकि सरकार यानी अफ़सरान दावा जो करते रहते हैं। वो कहते हैं डेयरियां बंद हैं तो मान लीजिये बंद हैं और सड़कों पर बिखरा गोबर असामाजिक तत्वों की देन है। जनाब अपनी सोच बदलिए सब खुशनुमा नजर आयेगा। ये शहर की नहीं आपके जेहन की गंदगी है, इसे फेंक आइये, कसम ऊपर वाले की ये बजबजाते नाले और नालियां कल-कल करती नदी का एहसास करती नजर आएंगी।
अच्छा सोचो, अच्छा दिखेगा, सरकार कह रही है हमने कर दिया, तो कर दिया होगा। वो कहते हैं कि 50 लाख खर्च कर नालों को साफ कर दिया तो मान कर चलिये नालों का उफान नहीं, बारिश की गुस्ताखी है। फाइलों में नालों की सफाई का साफ-साफ किस्सा दर्ज़ है, पार्षदों की मोहर, जूनियर इंजीनियरयों की तस्दीक के साथ है बिल पास करने का कमीशन भी दर्ज़ है। इतने लम्बे प्रोसेस के बाद अगर कोई कहे नाले बजबजा रहा हैं तो गंदगी आपके दिमाग की हो सकती है फाइलों में दर्ज़ आकड़ों की नहीं।
ये शहर एक गुलदस्ता है जहां सहअस्तित्व की अलबेली दास्तां हर गली कूचे में चस्पा है। वो कहते हैं मुस्कुराइए आप लखनऊ में हैं, जी हां, तब से लखनऊ का हर बाशिंदा अनथक मुस्कुरा रहा है। सड़कें कूड़े के मख़मली चादर तले गुम हैं। हम और आप उस पर मस्ती के साथ विचरने पर गौरान्वित हैं। आवारा जानवरों की कतार, कुत्तों के भौंकने की आवाज से गुंजित मुहल्लों के बीच रहने का आनंद भोगिए और मुस्कुराइए कि आप लखनऊ में हैं। मुस्कुराना जरूरी है क्योंकि हजारों खर्च कर हमारे अफसरानों नें बड़े बड़े बोर्ड शहर में लगाकर मुस्कुराने की ताकीद कर रखी है।
कूड़ा डालने पर जुर्माने का हकदार भले न हों लेकिन शहर की दोज़ख़ी सच्चाई पर न मुस्कुराए तो जुर्माने का हकदार होंगे क्योंकि ये सरकारी आदेश की हुक्म उदाली मानी जाएगी। जीवन जीने की कला में बदलाव लाइये, गंदगी और असुविधाओं के मायनों को सकारात्मकता में बदलिए तब ये शहर मस्त लगेगा, कुत्तों का झुंड, जानवरों का रेवड़ और बिकते एसिड का जख्म खत्म हो जाएगा। आइये हम और आप इस महाअभियान शरीक होकर, अभिनन्दन करें उनका, जिन्होंने सफाई से इतर दोज़ख को भी जन्नत की तर्ज़ पर देखने का हुनर सिखाया।