मणिपुर क्यों सुलग रहा है! सीमावर्ती छोटा सा प्रदेश आग का दरिया बनकर सामने है। विदेशी हस्तक्षेप हकीकत बन चुकी है और भारत सरकार की नीतियों के चलते कुकी व मैतेयी आदिवासियों के बीच हिंसक झड़पों का सिलसिला धीरे-धीरे घातक हो चुका है। भारत के आंतरिक और वाह्य हालातों पर गौर करें तो मणिपुर बारूद के ढेर का सच है। खालिस्तानियों की दस्तक पंजाब सुन रहा है। इसी के साथ पाकिस्तानी समर्थक इस्लामी जिहादियों की बढ़ती हरकतें, खतरे का एक संगीन सच है जो पूरे देश को झकझोर रहा है।
रेल दुर्घटनाओं के पीछे का षड्यंत्र और धर्म परिवर्तन की मुहिम के इशारों को आज और अभी समझने की जरूरत है। इसी संदर्भ में मणिपुर का जिक्र जब आता है तब विदेशी हस्तक्षेप, बांग्लादेश की बगावत और अमेरिकी साजिश की परतें अपने आप बेपर्दा होने लगती हैं। मणिपुर, भारत का सबसे संवेदनशील सीमावर्ती राज्य है। कभी चीनी हस्तक्षेप का दबदबा था, तो आज बांग्लादेश के बाद अमेरिकी षड्यंत्र का हिस्सा बनकर चेतावनी और चुनौती के साथ सामने है।
समझना होगा मणिपुर दो आदिवासी समूह कुकी और मैतेयी में विभाजित है। आज की तारीख में कुकी सशस्त्र क्रांति के जरिए अलग राज्य की मांग कर रहे हैं। कुकी समय के साथ इसाई धर्म अपनाते गए, मिशनरीज का दबदबा बढ़ता गया। पिछले करीब डेढ़ साल से मणिपुर रुक-रुक कर क्यों धधक रहा है। हिंसा और महिलाओं पर अत्याचार के मसले पर कांग्रेस पार्टी उग्र हो जाती है। लेकिन कभी विदेशी हस्तक्षेप से उपजी हिंसा पर न टिप्पणी होती है और न ही भर्त्सना का दौर नजर आता है।
मणिपुर में ड्रोन और रॉकेट से हमले हो रहे हैं। CRPF व अन्य अर्द्धसैन्य बलों को निशाना बनाने वाले कौन हैं। इसकी पहचान को क्यों दबाया जा रहा है, ये सवाल भी आमजन को झकझोरने के लिए काफी है। 70 हजार जवानों की तैनाती के बावजूद हिंसा क्यों नहीं थम रही है! इसका कारण फौरी उपाय और समस्या को पहचान कर आवश्यक कार्रवाई से सरकार का कतराना है।
बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार का पतन और अमेरिकी परस्त और मोहम्मद यूनुस के सत्ता संभालने के साथ ही ड्रोन व रॉकेट हमले का दौर अचानक क्यों शुरू हुआ। पहली बार बांग्लादेश में ड्रोन व रॉकेट का इस्तेमाल चौंकाने वाली घटना के साथ-साथ भारत के लिए चेतावनी भरा संकेत भी है। बांग्लादेश में सत्ता बदली और मणिपुर के कुकी अलगाववादियों के हौसले क्यों बुलंद हुए इस पर भारत सरकार को गंभीरता से विचार करना होगा।
फिलहाल भारत सरकार खामोश है और कुकी अलगाववादियों को खुलेआम शह देकर कुकीलैंड बनाने के लिए खाद-पानी मुहैया कराने का खेल जारी है। मणिपुर में कभी चीन का प्रभाव था, जिसके चलते अमेरिका ने स्थानीय लोगों के सहारे एक नए षड्यंत्र को आकार दिया। जो सीधे तौर पर भारत के लिए खतरे का संदेश ही नहीं बल्कि सीमावर्ती क्षेत्रों में अलगाव की एक नई इबारत लिखने की मुहिम सफल होती नजर आ रही हैं।
सुलगते, धधकते मणिपुर में आक्रोश की आग फिलहाल एक नए विद्रोह के रूप में सामने हैं जिसमे भारत सरकार की अव्यवहारिक नीतियों ने आग में घी का काम किया। भारत सरकार लोकतन्त्र बहाली की बात करती हैं लेकिन दूसरी तरफ उन्ही कुकी अलगाववादियों को सुरक्षा कवच का तोहफा भी देती हैं। विरोधाभास के इस भंवर जाल में मणिपुर की आम जनता सिसक रही हैं, अमेरिकी षड्यंत्र आकार ले रहा है और अलगाववादी सुरक्षा घेरे में हिंसा के कारक बनकर बेखौंफ सामने हैं। केंद्र सरकार के सामने समस्या तो हैं लेकिन शांति का रास्ता ऐसी हालत में कैसे तलाशा जा सकता हैं जब तमाम हथियार बंद संगठन चुनौंती देते सामने हैं। ये खतरनाक संकेत भी और विडम्बना भी।
इतिहास के पन्नों को पलटे तो म्यामार में चिन प्रदेश पर कब्जा करने के बाद कुकी आंदोलनकारीयों के हौसले इस कदर बुलंद हुए कि वे अब मणिपुर के हिस्सों को मिलाकर स्वतंत्र कुकीलैंड का दावा पेश करने लगे हैं। ये भारत की अखंडता पर सीधी चोट हैं। दुर्भाग्य की बात है, भारत सरकार इन्हीं अलगाववादियों को सुरक्षा दे रही हैं। अलग कुकीलैंड के लिए 24 कुकी अलगाववादियों के गुट संघर्ष कर रहे हैं और इन्हीं अलगाववादियों के साथ भारत सरकार ने समझौता कर रखा हैं। केंद्र सरकार की अक्षमता का ये सबसे घृणित सच हैं।
20 हजार से ज्यादा अलगाववादियों के लिए सुरक्षित कैंप की व्यवस्था हैं। जो भारतीय सुरक्षा बल की निगरानी में चलते है और इन्हीं सुरक्षा बालों को यही कुकी अलगाववादी निशाना बनाने से भी बाज नहीं आते। इतना ही नहीं इन अलगाववादियों को 6 हजार प्रति माह का भत्ता भी भारत सरकार देती हैं। भारत को तोड़ने का मंसूबा रखने वालों को ये तोहफा क्यों, ये सवाल वास्तव में चौंकने वाला हैं।
मतलब अलग देश की मांग को अमेरिका हवा दे रहा हैं और उसके समर्थकों को भारत सरकार 6 हजार मासिक देकर प्रोत्साहित कर रहीं हैं। फिलहाल न थमती हिंसा के बीच मूल रूप से भारत में ही रहने वाले मैतेयी समुदाय में आक्रोश की आग धधक रही हैं। हालत देखिए कुकी हमला कर अपने कैंपों में छिप जाते हैं जिनकी सुरक्षा भारत के सैन्यबल करते हैं और मैतेयी शिकार होते हैं, निराश होकर शांत बैठ जाते हैं। यहां पर विश्वास का संकट है।
तो वहीं माओंवादियों का भी वर्चस्व एक बार फिर दस्तक देता सामने हैं। हालत और बिगड़े इससे पहले जरूरी हैं की कुकी अलगाववादियों के साथ हुए समझौंते को रद्द कर साफ संदेश दिया जाए की भारत को तोड़ने की मंशा कोई भी रखे उसे कुचल दिया जाएगा।