बारिश, ठेका और सरकारी विभागों की तालमेल की ये खूबसूरत दास्तां है। शहर या मुहल्ले डूबे या घरों में पानी घुसे या सड़कों पर अंधेरा पसरे, स्ट्रीट लाइट की चोरी हो, ठेकेदार जाने। लखनऊ नगर निगम के अफसर और कर्मचारी खूबसूरती से अपनी नौकरी बचाने के हुनर की नुमाइश करते हुए बच जाते हैं और शहर दो पाटों में पिसता हुआ खामोशी से सरकारी नाटक का गवाह बनकर शांत हो जाता है। इसकी खूबसूरत बानगी राजधानी में उस वक्त नजर आई जब बारिश के चलते मुहल्लों और घरों में पानी जमा-घुसा था तो वहीं बाल्मीकी नगर स्थित पम्पिंग स्टेशन ठप था और दो हजार स्ट्रीट लाइटों की शिकायत दर्ज होने के बावजूद एक हजार लाइटों का अछूता रह जाना।
यह जनता की व्यथा, ठेकेदारों की कर्मकथा और सरकारी अफसरानों की लुटेरी सोच की बानगी है। झमाझम बारिश का दौर, लखनऊ के आसपास के इलाके जगमग्न, तभी पता चला कि बाल्मीकी नगर के पम्पिंग स्टेशन ठप हैं। यहीं से शुरू होती है सरकारी कामकाज में कोताही। यह स्टेशन भी ठेकेदार की कृपा पर चल रहा है। निर्देश था बारिश से पहले सभी पम्पिंग स्टेशन दुरुस्त कर दिए जायें। मुहल्ला डूबा तो नगर निगम चेता। एसी कमरे में कैद अधिशाषी अभियंता एक्टिव हुए नौकरी बचाने का तरीका तलाशा।
आनन-फानन में कार्यदायी संस्था सरोज मशीन एंड मेंटेनेस पर 25 हजार का जुर्माना ठोंक दिया। अभियंता की नौकरी बची लाखों कमाने वाले का 25 हजार देकर ठेका बचा। और क्या चाहिए था अफसरानों और ठेकेदारों को, डूबना जनता की नियति है और ठेका देना, कमीशन खाना विभाग की संस्कृति। बरसात खत्म, एक्शन खत्म और फिर वही मस्ती व जश्न। इसी तर्ज़ पर चलते नगर निगम का एक और विभाग है जिसकी जिम्मेदारी शहर को रौशनी से नहलाने की है। सड़कों और गलियों में स्ट्रीट लाइटों की ज़िम्मेदारी इसी विभाग की है। यहां भी ठेके का जलवा अपने शबाब पर है।
मुख्य अभियंता “विद्युत यांत्रिक” गफलत की दुनिया में मस्त थे लेकिन मसला जब मुख्यमंत्री के शिकायत प्रकोष्ठ तक पहुंची तो अभियंता महोदय तुरंत एक्टिव हुए और अपनी बला दूसरे पर डालते हुए सहायक अभियंता ईशान पाण्डे को चेतावनी पत्र ठोंक दिया। इसमें ग्यारह सौ स्ट्रीट लाइटों के खराब होने का मामला दर्ज हुआ। सहायक अभियंता को भी अपनी नौकरी बचानी थी तो उन्होंने कार्यदायी संस्था की घेराबंदी शुरू कर दी।
कागजी कार्यवाही सिर्फ अपने को बचाने की कवायद थी। इसमें कहीं भी मसला नहीं था कि खराब लाइटें अभी तक क्यों खराब हैं। और, यदि कार्यदायी संस्था गैर जिम्मेदार थी तो इस बीच मुख्य अभियंता, सहायक अभियंता और कार्यदायी संस्था में तैनात अवर अभियंता क्या कर रहे थे। अगर मुख्यमंत्री स्तर पर ये समस्या न उठी होती तो ये मसला ही नहीं था उन लोगों के लिए।
गौर करने की बात है कि मुख्य अभियंता कागजी खानापूरी के लिए सहायक अभियंता तक ही नहीं रुके बल्कि कार्यदायी संस्था में तैनात अवर अभियंता हरमीत सिंह कलसी और सिद्धार्थ चतुर्वेदी को भी चेतावनी पत्र जारी कर दिया। खराब स्ट्रीट लाइटों का क्या हुआ इसका जवाब अब भी सवाल बना हुआ है। तब सवाल उठता है कि मुख्य अभियंता अचानक इतने सक्रिय कैसे हो गए जब कि लखनऊ के मुहल्ले दर मुहल्ले अंधेरे में डूबे हैं तो कहीं 500 कदम के दायरे में स्ट्रीट लाइटों और मास्टहेड लाइटों की कतार है। इतना ही नहीं तमाम स्थानों पर 24 घंटे स्ट्रीट लाइटें सूरज को आईना दिखा रही हैं। मसला मुख्यमंत्री शिकायत प्रकोष्ठ न होता तो किसको फिक्र थी अंधेरे और उजाले की।
ये हत्यारे हैं
जिंदा इंसान को पहले लाश में बदलो, फिर कीमत तय करो। यह है मौजूदा कार्यशैली का एक घिनौना सच। लखनऊ के गुडम्बा स्थित कंचन नगर में एक 14 साल के बच्चे की मौत ओपेन जिम में करेंट लगने से हो गई। मौत दस्तक देकर आई परिजन परेशान हैं, माँ की चीत्कार, कानों को चीर रही है और नगर निगम के जिम्मेदार अफसरान शिकायत और हादसे को अपने तर्ज़ पर बदलने में लगे हैं। एक जिंदा इंसान को लाश में बदलने वालों से सवाल की आप पांच लाख देकर रोती कलपती माँ को उसका बेटा अभिषेक वापस मिल जाएगा। सवाल खुले तारों, मास्ट लाइट के पोल में उतरते करेंट का है, पहले से दर्ज़ शिकायतों का है, लापरवाही का है और सारी ज़िम्मेदारी कार्यदायी संस्था पर छोड़कर अपनी नौकरी बचाने का है।
ज़िम्मेदारी से भागने का यह आसान तरीका प्रायः हर सरकारी विभाग का आजमाया हुआ नुस्खा है। मसला ये नहीं कि कितनों को निलम्बित किया, कितनों को बर्खास्त… तय करो कि अभिषेक की मौत का जिम्मेदार कौन है। क्योंकि ये हादसा नहीं, अपंग कार्यशैली के चलते यह हत्या है। हत्या के गुनाहगार को बचाने के लिए कार्यदायी संस्था को ब्लैकलिस्ट करने नाटक बंद होना चाहिए। अगर EESL, ECO CENT, प्रभात कंस्ट्रक्शन यदि गुनाहगार हैं तो उस पर निगाह रखने के लिए तैनात अवर अभियंता क्या कर रहे थे। लाइन मैन, स्विचमैन और सुपरवाइज़र नौकरी से हटा दिये गए। ये सरकारी कार्यशैली की परंपरागत कार्य संस्कृति का हिस्सा हैं।
कंचन नगर के गायत्री पार्क में लगाई गई हाई मास्ट लाइट का तार एक महीने पहले आँधी के चलते टूटकर लटक रहा था। लाइट के पोल से टकरा रहा था, शिकायतें जारी थीं। तार झूलता रहा, आँधी से हाई मास्ट के टेढ़े हो गए चार कोनों को ठीक कर दिया गया लेकिन पोल तक आने वाले कटे तार को छुआ तक नहीं। इसी पोल के संपर्क में आने से एक किशोर असमय मौत के गोद में समा गया। कौन थे वो लाइनमैन जो हाई मास्ट तक पहुंचे लेकिन करेंट दौड़ते, लहराते तार को ठीक करने कि जहमत नहीं उठाई। मौत के बाद सरकारी खानापूरी बंद होनी चाहिए, जांच कमिटी गठन का सिलसिला सीधे तौर पर प्रकाश विभाग के मुख्य अभियंता कि घेराबंदी करो, गुनाहगार मानकर तथ्यों को सामने लाओ फिर सजा के लिए कोर्ट पर छोड़ दो क्योंकि ये लापरवाही मौत संदेश देकर सामने थी और सही अंदाज में नौकरी करती पूरी टीम नौकरी बचाने का हुनर जानती है। काम को बेहतर ढंग से सम्पन्न कराने का वास्ता दूर दूर तक नहीं है।