कुछ इसी क्रियाकर्म के बीच डेंगू की रफ्तार न थमने की नाम लेती है न ही संबन्धित विभाग सुधरने की गुंजाइश छोड़ता है। मज़ाक बन कर रह गई महामारी से बचने की योजना। सब कुछ स्टीयरोटाइप। 29 अगस्त 2024 को हाई कोर्ट ने पूछा डेंगू से निपटने के क्या उपाय किये हैं। कुछ ऐसा ही सवाल लगभग 11 साल पहले 2013 में सामने आया था जब लखनऊ डेंगू के कहर से दो-चार हो रहा था। 2013 से 2024 तक इस सफर की बानगी देखिए और जवाब की अजीबोगरीब दास्तां का सच जानिए। 2013 में नगर निगम के जिम्मेदार फरमाते हैं कि फिलहाल फॉगिंग की 110 से ज्यादा मशीनें हैं, लेकिन कर्मचारी नहीं हैं।
ठेके पर काम चलाया जा रहा है। ये भी बताया गया कि कर्मचारियों के अभाव में छोटी मशीनें भी कबाड़ हो रही हैं। समय बीता, हाई कोर्ट के आदेशों व टिप्पणियों का क्रम जारी रहा और 29 अगस्त 2024 आते आते हाईकोर्ट ने जब जवाब मांगा तब नगर निगम के अफ़सरानों ने कहा कि निपटने के संसाधन नाकाफी हैं। मतलब 2013 में संसाधन थे लेकिन कर्मचारी नहीं तो वहीं 2024 आते आते कर्मचारी हैं लेकिन संसाधनों की कमी का अजीबोगरीब पेशकर राजधानी लखनऊ को एक ऐसी भयावह स्थित लाकर खड़ा कर दिया जिसके आगे शायद हाईकोर्ट के आदेश भी बेईमानी नजर आते हैं। रटे रटाए जवाब , जस की तस कार्यशैली और इसके बीच सिसकती लखनऊ की आवाम।
इसके पहले 11 अगस्त 2024 को डेंगू के रोकथाम के लिए व्यापक फॉगिंग का दावा किया गया। और 29 अगस्त आते आते हाईकोर्ट ने सवाल दागा कि लखनऊ के 110 वार्डों में कचर निस्तारण, नालियों की सफाई, सड़कों पर पसरा गंदा पानी और फॉगिंग के लिए अब तक क्या उपाय किए। फॉगिंग को लेकर नगर निगम के स्वास्थ अधिकारी क्या फरमाते हैं।
नगर निगम में बड़ी फॉगिंग मशीने हैं, पतली गलियों के लिए 120 छोटी मशीनें और पानी से चलने वाली 42 कोल्ड फॉगिंग खरीदी तो गई हैं लेकिन कर्मचारियों के अभाव के चलते प्रभावी काम नहीं होता हैं। मशीन है आदमी नहीं तो नगर निगम अपनी कमियों को छुपाने के लिए मच्छरों के खिलाफ अभियान ने गम्बूजिया मछलियों का सहारा लिया जा रहा है।
जो शहर बरसात के दौरान जल भराव , बजबजाते नाले और नालियों की सफाई नहीं करा सका उस नगर निगम का एक अधिकारी अब मछलियों के सहारे मच्छरों के खिलाफ अभियान का दावा पेश कर रहा हैं। जो शहर बजबजा रहा हैं इसके लिए कितनी मछलियों की जरूरत पड़ेगी इसका भी खुलासा कर देते शायद अपनी पीठ खुद थपथपाने का सपना शायद पूरा हो जाता।
गज़ब का तर्क अजब से दावे, निहायत घटिया हिसाब हैं और बेअंदाज हैं अफसरो के हौसले।
याचिकाओं का सिलसिला जारी रहेगा, हाई कोर्ट जवाब मांगता रहेगा, फाइले तैयार होती रहेंगी, अगली सुनवाई का राहत का मरहम के चलते नगर निगम के कारकून मस्त रहेंगे इस बीच लखनऊ यहीं अव्यवस्था की चादर में लिपटा सिसकता अपनी किस्मत को कोसता रहेगा।