आजादी और स्वतन्त्रता के बीच बढ़ता हिन्दुस्तान कई मायनों में अलग है। हम आजाद हुए, वो अलग हुए और शब्दों का मुलम्मा एक तारीख के साथ हमारे लोकतन्त्र को बुलन्दियों का अहसास करता गया और वहीं पड़ोस के बंद दियारों में आज भी खुली हवा के झोंकों का इंतजार है। बहुत सी घटनायें हैं, यादों के झरोखों में समाई वो सच्चाई है जो कभी धरातल पर नुमाया हुई तो कभी किताबों के वर्कों में इतिहास बन कर समा गई।
इसी झंझावात के बीच विचारों का उफान, हकीकत से रूबरू होने की खदबदाहट के चलते जमीनी धरातल पर सोच को हकीकत में तब्दील करने की निस्बत “उदय बुलेटिन” आपके बीच और आपके साथ समन्वय के मकसद से सामने है। मसला यह नहीं कि भीड़ में एक नाम और जुड़ जाए। सवाल सीधा सा है कि हम और आप जुड़कर एक नई सुबह की इबारत लिखें।
इसमें रोशनी हो, आपके दर्द की कचोटन और भीड़ के अंतिम शख़्स की आवाज हो। वो आवाज जो लोकतन्त्र की खुली बयार के बावजूद कहीं सिसकती हुई अपना वजूद खो चुकी है। “उदय बुलेटिन” उसी सच के मायनों का पुंज है। “उदय बुलेटिन” हर उस आवाज का प्लेटफॉर्म है जिसकी पहचान तो दूर उसको नजरंदाज किया जाता रहा।